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बिरामी (जगावासखेड़ा, भ्रांमी-ब्राह्मी)

बिरामी (जगावासखेड़ा, भ्रांमी-ब्राह्मी)

राजस्थान के पाली जिले में राष्ट्रीय राममार्ग क्र. १४ पर साण्डेराव से ७ कि.मी. दूर दायीं तरफ, 'बिरामी ढाणी’ चौराहा से रानी जाने वाली पक्की सड़क पर ३ कि.मी. दूर स्थित है 'बिरामी’ गांव। बिरामी का प्राचीन नाम 'भ्रामी’ या 'ब्राह्मी’ था, जो अपभ्रंश होते होते बिरामी हो गया। यहां पहले करनात राजपूतों का ठिकाना था।


मूलगांव प्राचीन नागौर में श्री करमसिंहजी के परिवार से यहां के परिवारों की कड़ी जुड़ती है। श्री करमसिंह के पुत्र श्री सालजी (सालाजी) द्वारा एक लाख द्रव्य से श्री महावीर स्वामीजी के मंदिर का निर्माण करवाकर संवत् १४८७, वै.सु.११ को भट्टारक कृषभसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठा करवाने का उल्लेख मिलता है। किसी कारणवश सं. १५१५ में नागौर से यह परिवार मथानिया आकर बस गया और यहां सं. १६६५ तक रहा। मथानिया में चारण जाति, जो छंद व दोहा के लिये प्रख्यात है, का जोधपुर दरबार में अच्छा खासा बोलबाला था। एक प्रतियोगिता में विजय हासिल करने पर चारणों का पूरा मथानिया गांव भेंट स्वरूप प्राप्त हुआ। लेकिन श्री अमीचंदजी व श्री हेमराजजी के पूर्वज श्री जरमनजी ने चारणों का अधिपत्य स्वीकार नहीं किया और अपने पूरे परिवार के साथ सं. १६६५ में मथानिया छोड़ दिया। अलग-अलग गांवों में बसेरा करते हुए अंतत: इस परिवार के श्री अमीचंदजी व श्री हेमराजजी ने बिरामी आकर निवास किया। इन्हीं दोनों भाईयों के वंशज गिडिय़ा मेहता आज बिरामी में निवास करते है। इसके अलावा जैनों में भंसाली व सोनीगरा गोत्र के वंशज खिमेल से आकर बसे।


'जैन तीर्थ सर्वसंग्रह’ ग्रंथ के अनुसार सं. १९३० में शिखरबद्ध मंदिर में १६वें तीर्थंकर श्री शांतिनाथ प्रभु की प्रतिमा सह पाषाण की १२ व धातु की २ प्रतिमाएं स्थापित की। कालांतर में श्री संघ द्वारा जीर्णोद्धार करवाकर नूतन शिखरबंध जिनालय में, भट्टारक आ. श्री राजसूरीश्वरजी के कर-कमलों से वीर नि.सं.२५२१, शाके १९१६, वि.सं. १९५१ के माह सुदि १३ को प्रतिष्ठा संपन्न हुई। जैन मंदिर का खात मुहूर्त १९३२-१९३३ में हुआ था।


वि.सं. १९५१ में माह सुदि ५ (वसंत पंचमी), गुरूवार को श्री वरकाणा तीर्थ प्रतिष्ठोत्सव पर ६०० जिनबिंबों की भ. राजसूरिजी के हस्ते हुई अंजनशलाका प्रतिष्ठा में यहां की भी प्रतिमाएं थी, जो प्रतिष्ठा महोत्सव में स्थापित की गई। कालांतर में शिखर के जीर्ण होने पर उसका जीर्णोद्धार करवाके पुन: वि.सं. २०५७, महासुदि १३ को ध्वजा-दंड व कलशारोहण का भारी महोत्सव हुआ।


शताब्दी महोत्सव : (सं. १९५१ से २०५१) शास्त्रों के अनुसार जिस मंदिर, प्रतिमा की प्रतिष्ठा को १०० वर्ष पूर्ण हो जाये वह तीर्थ स्वरूप बन जाता है। इसी के मद्देनजर श्री संघ ने पू. आ. श्री दर्शनसागरसूरिजी के पट्टधर आ. श्री नित्योदयसागरसूरिजी आ. ठा. ४ और गोड़वाड़ दीपिका सा. श्री लेहरों महाराज आदि ठाणा ४१ की निश्रा में ग्यारह दिवसीय महामहोत्सव में विविध पूजाओं, स्वामीवात्सल्य आदि कार्यक्रम किया। शताब्दी महोत्सव के दिन अर्थात वि. सं. २०५१ महासुदि १३ को जिनालय पर हेलीकाप्टर से पुष्पवृष्टि के साथ ध्वजा चढाई गई।


चातुर्मास : गोड़वाड़ के बांकलीरत्न पू.आ.श्री विश्वचंद्रसूरिजी आ.ठा. ३, पू.मु.श्री मंगलविजयजी आदि ठाणा, गोडवाड दीपिका सा. श्री ललितप्रभाश्रीजी (लेहरों म.सा.) आदि ठाणा, पू.सा. बिरामी कुलदीपीका अक्षयरसाश्रीजी (मधु म.सा.) का चातुर्मास हुआ। कर्म निर्जरा का अति उत्तम साधन तपश्चर्या की झड़ी लगी थी। ६० घरों की बस्ती में कुल २७ मासक्षमण, सिद्धीतप व बड़ी संख्या में अठ्ठाई तप की आराधना हुई। सं. २०७० के में आ. श्री ललितप्रभसूरिजी व सा. श्री. ललितप्रभाश्रीजी आ.ठा. ११ का चातुर्मास चल रहा है। सं. २०१३ में उपधान तप की आराधना हुई। संयम मार्ग पर ५ कुलदीपीकाओं ने धर्म मार्ग स्वीकारा व कुल एवं नक्षर का नाम रोशन किया।


'बिरामी निर्देशिका – २००२’टेलीफोन डायरेक्टरी-२००९ का प्रकाशन हुआ। जैन सकल संघ बिरामी की सं. १४८७ से सं. २०६४ तक की वंशावली बनाकर पूरे गोडवाड़ क्षेत्र में एक कीर्तिमान श्री मीठालालजी तेजराजजी गिरिया मेहता ने बनाया है।


बिरामी : नदी किनारे बसे बिरामी में तालाब किनारे स्थित वाराही माताजी मंदिर, बायोसा मंदिर, श्री वल्लावाला हनुमानजी, चारभुजा महादेवजी, शीतलामाता मंदिर आदि जन-जन की आस्था का केन्द्र है। यहां उच्च प्राथमिक विद्यालय, पनघट, कबूतर चबूतरा, बालिका विद्यालय, ग्राम पंचायत, दूरध्वनी केन्द्र, हॉस्पीटल, पोस्ट ऑफिस, तालाब इत्यादी हर सुविधाएं उपलब्ध है। यहां कुल ९ स्कूलें, मारवाड़ ग्रामीण बैंक और पुलिस थाना (साण्डेराव) है। यहां की सुतरफिणी प्रसिद्ध है। जैनों की घर हौती १३०, जनसंख्या ६०० तथा संपूर्ण कस्बे की ४००० के करीब जनसंख्या है। मंदिर की कुल ३१ बीघा जमीन है। प्रतिवर्ष महा. सु. १३ को श्री जोराजी-वनेचंदजी-देवाजी भंसाली परिवार ध्वजा चढाते है। गांव से लगभग ३ कि.मी. दूर हाईवे पर नवनिर्मित श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ तीर्थधाम है।


मार्गदर्शन : बिरामी रानी रेलवे स्टेशन से १० कि.मी. फालना रेलवे स्टेशन से २० कि.मी., जोधपुर हवाई अड्डे से १३५ कि.मी. और राष्ट्रीय राजमार्ग क्र. १४ से मात्र ३ कि.मी. दूरी पर स्थित है। यहां से साण्डेराव १० कि.मी., सुमेरपुर ३० कि.मी., वरकाणा तीर्थ १७ कि.मी. और पाली ५० कि.मी. दूर है। हाईवे पर सरकारी बसें, प्रायवेट खलसा बसें, टैक्सी, ऑटों आदि की सारी सुविधाएं उपलब्ध है।


सुविधाएं : कुल ३ धर्मशालाएं साधु-साध्वीजी हेतु अलग-अलग उपाश्रय, आराधना भवन, पेढी भवन, आयंबिल भवन एवं भोजनशाला की सुंदर व्यवस्था है। २ अटैच तथा २ वातानुकूलित कमरें है। २ हॉल भी है। १०० लोगों हेतु बिस्तर व बर्तन के पूरे सेट है।

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