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बीजापुर (विन्ध्यनगर)

बीजापुर (विन्ध्यनगर)

'बीजापुर’ गोडवाड़ का एक प्रवेश द्वार है, जो राष्ट्रीय राजमार्ग क्र.१४ पर सुमेरपुर मंडी से ३० कि. मी. जवाई बांध रेलवे स्टेशन से २० कि.मी., फालना रेलवे स्टेशन से २७ कि.मी. दूर पूर्व-दक्षिण कोण में अरावली पर्वत के निकट राता महावीरजी से ४ कि.मी. दूर एक छोटी से टेकरी पर बसा है।


हमारी आचार्य परंपरा के पृष्ठ क्र. १३० पर उपलब्ध विवरण के अंतर्गत त्रिपुटी म. के अनुसार, बीजापुर की स्थापना सं. ९२७ में हुई। पाटण के राजा रत्नदित्य चावड़ा ने यह कुंड बनवाया था और गुर्जरेश्वर कुमारपाल ने यहां किले का निर्माण करवाया। महामात्य वस्तुपाल ने यहां कि चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।


एक अन्य उल्लेख के अनुसार, सं. १२५६ में विजलदेव परमार ने ‘बीजापुर’ बसाया। त्रिपुटी म. ने यह संभावना व्यक्त की है कि यह गोड़वाड़ स्थित बीजापुर हो स·ता है। यह भी उल्लेख है कि चंद्रसिंह पोरवाड के वंशज सेठ पेथड ने बीजा के साथ मिलकर 'बीजापुर’ बसाया। जहां जिनालय बनवाकर सं. १३७८ में सोने की जिनप्रतिमा की प्रतिष्ठा करवाई। तपागच्छ के पं. अजितप्रभ गणि ने, सं. १२९५ में बीजापुर में धर्मरत्न श्रावकाचार की रचना की। बीजापुर में जिनालयों का उल्लेख त्रिपुटी म. ने किया है। इन्हीं के अनुसार अग्रिकोण में चार कोस दूर तक एक प्राचीन और दो नवीन खड़ायते में कुछ टेकरियां है। एक टेकरी पर अंबिका देवी की प्रतिमा है। देवी प्रतिमा के चारों ओर जिन प्रतिमाओं एवं देवी प्रतिमाओं के अवशेष पड़े है। इस उल्लेख से बीजापुर के महत्व का पता चलता है।


हमारी आचार्य परंपरा के, पृष्ठ क्र. २०७ के अनुसार, सं. १६९७ में विंध्यनगर (बीजापुर गोड़वाड़) में जिन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा संपन्न कर भट्टारक श्री विजयदेवसूरि ने उदयपुर में चातुर्मास किया, जहां उदयपुर के राणा को उपदेश देकर वरकाणा तीर्थ के मेले पर लगने वाला कर तथा जकात माफ करवाया।


'जैन तीर्थ सर्वसंग्रह’ ग्रंथ के अनुसार, श्री संघ ने सं. १६०० के लगभग इसका निर्माण करवाकर शिखरबंध जिन चैत्य में मूलनायक श्री संभवनाथ स्वामी की प्रतिष्ठा के साथ पाषाण की ९ व धातु की १३ प्रतिमाएं स्थापित की। यहां काँच का सुंदर काम व एक लायब्रेरी है।


६०० वर्ष प्राचीन, संप्रतिकालीन मूलनायक श्री संभवनाथ प्रभु की २१ इंची, श्वेतवर्णी, पद्मासनस्थ, प्राचीन व आकर्षक प्रतिमा स्थापित है। मंदिर में चौमुख देवालय है, जिसमें स्थापित चारों प्रतिमाओं की अंजनशलाका, कोरटातीर्थ प्रतिष्ठोत्सव पर वि.सं.१९५९, वैशाख सुदी पूर्णिमा, गुरूवार को जैनाचार्य श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरिजी महाराज के करकमलों से हुई है। इस दिन कुल ३०० प्रतिमाओं की अंजनशलाका हुई थी। पास में श्री चंद्रप्रभु स्वामी का मंदिर है।


प्रतिष्ठा : मूलनायक श्री संभवनाथजी मंदिर, जो गांव के बीचोंबीच अति भव्य दो विशाल गजराजों से शोभित, रावला व ठाकुरजी मंदिर के साथ जुड़ा और भव्य-दिव्य कलात्मक शिखर से युक्त है, के जीर्णोद्धार के बाद वीर नि. सं. २४७६, शाके १८७०, वि.सं.२००६, मार्गशीर्ष शुक्ल १०, बुधवार दि. ३०.१२.१९४९ को प्रात: १०.२३ बजे शुभ मुहर्त में पंजाब केसरी, गोडवाड़ के उद्धारक आ. श्री वल्लभसूरिजी की निश्रा में प्रतिष्ठा संपन्न होकर प्राचीन मूलनायक श्री संभवनाथजी सहित श्री कुंथुनाथजी एवं श्री श्रेयांसनाथजी और दूसरे मंदिर में श्री चंद्रप्रभु स्वामीजी सहित श्री अजितनाथजी व श्री कुंथुनाथ स्वामीजी की स्थापना के साथ अन्य ४५ जिनबिंबों की अंजनशलाका प्रतिष्ठा दि. २६.१२.४९ को मार्गशीर्ष शु.६ शुक्रवार यानी चार दिन पूर्व, राता महावीरजी प्रतिष्ठा के दिन संपन्न हुई थी।


दीक्षा महोत्सव : प्रतिष्ठा के दिन ३ दीक्षार्थियों का वर्षीदान वरघोड़ा निकला, जो तालाब के किनारे पहुंचा, जहां वट वृक्ष के नीचे विजय मुहुर्त (१२.३९ बजे) में आ. श्री ललितसूरिजी ने दीक्षा विधि-विधान संपन्न करवाये। सादड़ी नि. रतनचंदजी बंबोली को दीक्षा देकर उनका नाम मु. श्री न्याय वि. रखा। इसी तरह लटाड़ा नि. श्री चंद को दीक्षा देकर मु.श्री प्रीति वि. और बेड़ा निवासी शिवलालजी को दीक्षा देकर मु.श्री हेम वि. नाम रखा। दीक्षा व प्रतिष्ठा महोत्सव पर १९ साधु व ५० साध्वीयां उपस्थित थी। प्रतिष्ठा के बाद आ. श्री ठाकुर साहेब श्री देवीसिंहजी की विनंती को स्वीकार कर उनके महल पधारे।


प्राचीन दीक्षाएं :

आचार्य श्री विजय कल्याणसूरिजी म.सा.

बीजापुर निवासी देसलजी की धर्मपत्नी धुलीबाई की कुक्षी से वि.सं. १८२४ में एक पुत्र रत्न का जन्म हुआ, जिसका नाम कलजी रखा गया। आप ज्योतिष और गणित के श्रेष्ठ विद्वान थे। आ. श्री विजयदेवेन्द्रसूरिजी से दीक्षित आ. श्री. कल्याणसूरिजी को वि.सं. १६६८ के आस-पास अपने पाट पर प्रतिष्ठित किया। आपने अनेक ग्राम नगरों में विहार कर अपने उपदेश से अनेक प्रतिमा विरोधियों का उद्धार किया। आपने सं. १८९३ में प्रमोदविजयजी को आचार्य पद प्रदान कर अपने पाट पर प्रतिष्ठित किया। आपश्री का आहोर में स्वर्गवास हुआ।


वि.सं. १९७५, फा.सु. ३ को मु. श्री यतीन्द्रविजयजी (आ.श्री राजेन्द्रसूरिजी के शिष्य) ने बीजापुर निवासी केशरबाई पति रामचंद्रजी पोरवाल को दीक्षा प्रदान कर सा. श्री चमनश्रीजी नामकरण किया व गुरूणी सा. मानश्रीजी की शिष्या बनाया। आपश्री का सं. २००१ में पौ.सु. ११ को अहमदाबाद में स्वर्गवास हुआ।


सा. श्री सुर्योदयाश्रीजी और सा. श्री कैलाशश्रीजी की जन्मभूमि यही है। बीजापुर से ५ श्रावक व ८ श्राविकाओं ने दीक्षा ग्रहण कर कुल व नगर का नाम रोशन किया। वि.सं. २०२४ जेठ वदि ६ को मुंबई के गोरेगांव में बीजापुर निवासी श्री अरूणकुमार गुलाबचंदजी जवेरीचंदजी पोरवाल को पू. आ.श्री गोड़वाड़ बांकली रत्न श्री सुबोधसूरिजी ने दीक्षा प्रदान कर मु.श्री अरूणविजयजी नामकरण किया। परम पूज्य अक्किपेठ संघ संस्थापक पंन्यास प्रवर, राष्ट्रभाषा रत्न, साहित्य रत्न, एम.ए., न्यायदर्शनाचार्य एम.ए., श्री अरूण विजयजी गणीवर्य म.सा. रातामहावीरजी हथुण्डी पर श्री समोवसरण मंदिर व पूणे स्थित श्री विरायलम के रचनाकार है।


प्रतिष्ठाएं :

१. वर्तमान श्री संभवनाथ जिन मंदिर में गंभारे के बाहर नूतन निर्मित गोखलानुमा छतरियों में सं. २००६ के प्रतिष्ठा महोत्सव में अंजन की हुई ६ प्रतिमाएं, जो अब तक मेहमानरूपी पूजी जा रही थी, उन्हें वि. सं. २०५६ माघ शुक्ल १४ शुक्रवार दि. १८.२.२००० को आ. श्री पद्मसूरिजी के वरद हस्ते प्रतिष्ठित किया गया साथ ही प्राचीन शिखर जो जीर्ण हो गया था, उसे भी नूतन रूप प्रदान कर ध्वजा-दंड-कलशारोहण की प्रतिष्ठा संपन्न हुई।


२. श्री संभवनाथ भगवान की छत्रछाया में श्री आदिनाथ भगवान के चरणपादूका, आ. श्री वल्लभसूरिजी की गुरूमूर्ति व श्री क्षेत्रपाल देव की पंचाहिन्का महोत्सव पूर्वक प्रतिष्ठा वि.सं. २०६१, वै. कृ.७, शनिवार, दि.३० अप्रैल २००५ को शुभ मुहुर्त में आ. श्री पद्मसूरिजी के हस्ते संपन्न हुई। गुरू मंदिर का शिलान्यास वि. सं. २०६०, द्वि श्रावण शुक्ल १३, शनिवार दि. २८.८.२००४ को हुआ था।


पुराने न्याति नोहरे को आधुनिक रूप देने हेतु दि. २७.१.१९९३ को खास मुहूर्त संपन्न कर दो साल बाद नूतन वास्तु का वि. सं. २०५१ के मार्गशीष शु. १० दि. १२.१२.१९९४ को पंचाहिन्का महोत्सव पूर्वक इसका उद्घाटन हुआ। प्रत्येक दिन कम से कम एक मांगलिक आयंबिल होना जरूरी है और इसके लिये नंबर अनुसार प्रत्येक परिवार में किसी न किसी को आयंबिल अनिवार्य रूप से करना है। यह क्रम वर्षों से निरंतर और अखंडित चालू है। ऐसी योजना अन्यत्र कहीं देखने-सुनने में नहीं आई।

प्रतिवर्ष मगसर सु.१० को श्री शशिकांतजी प्रभुलालजी सत्तावत परिवार ध्वजा चढाते है।


गांव बीजापुर : यहां पर श्री महावीर विद्यालय, कन्याशाला, १२वीं तक शिक्षा, चिकित्सालय, ग्रामीण बैंक, जवाई व मिठड़ी बांध से सिंचाई, विशाल जलाशय जिसका तलिया मंडिया जमीन होने से इसमें कभी भी पानी कम नहीं होता और बारहों महीने इसमें पानी कायम रहता है, चार भुजानाथ का सुंदर मंदिर, दूरसंचार, पुलिस चौकी, विद्युत इत्यादी सारी सुविधाएं उपलब्ध है।

ठिकाणा - बीजापुर रावला के वर्तमान ठाकुर साहेब श्री पुष्पेन्द्र सिंहजी, नरेन्द्र सिंहजी राणावत पिछले सन् २००४ से लगातार बाली विधानसभा क्षेत्र के विधायक है। वे अत्यंत लोकप्रिय, मिलनसार व क्रियाशील व्यक्तित्व है।


श्री आत्मवल्लभ जैन सेवा मंडल : आ. श्री वल्लभसूरिजी की शुभ निश्रा में सं. २००६ में हथुण्डी व बीजापुर की प्रतिष्ठा महोत्सव पर स्थापित संगठन निरंतर अपनी सेवाएं प्रदान करता रहा है। सं. २००९ की राणकपुर प्रतिष्ठा में अपनी अमूल्य सेवाएं दे चुके मंडल ने सं. २०५६ में स्वर्ण जयंती मनाई थी।


मार्गदर्शन : जवाई बांध रेलवे स्टेशन से २० कि.मी. दूर बाली से पिंडवाड़ा जाने वाली मुख्य सड़क पर स्थित, बीजापुर में आवागमन के सारे साधन उपलब्ध है। बीजापुर से फालना २५ कि.मी., राता महावीरजी ४ कि.मी., सिरोही रोड स्टेशन ४५ कि.मी. और जोधपुर हवाई अड्डा १७० कि.मी. दूर स्थित है। सुविधाएं : यहां विशाल न्याति नोहरा, आयंबिल भवन, धर्मशाला, उपाश्रय व भोजनशाला की उत्तम व्यवस्था है। १५०० वर्गफीट का विशाल हॉल है। बड़े १० कमरों के साथ २०० लोगों हेतु बर्तन व बिस्तर के पूरे सेट उपलब्ध है। ४ कि.मी. दूर, राता महावीरजी पर सभी सुविधाएं है। वहां भी ठहर सकते है।

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