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भूति

भूति

जालोर जिले की आहोर तहसील के अंतिम छोर पर तथा गोडवाड की पश्चिमी सीमा पर ऐतिहासिक गांव ‘भूति’ बसा है। फालना रेलवे स्टेशन से मोकलसर मार्ग पर वाया सांडेराव से २५ कि.मी. दूर खारी नदी के किनारे व छोटी—सी पहाडी की तलहटी में सौधशिखरी विशाल जिनमंदिर में श्वेतवर्णी पद्मासनस्थ प्रभु श्री महावीर स्वामी की अति सुंदर प्रतिमा विराजमान हैं। दूसरे जिनमंदिर में प्रभु श्री आदिनाथ दादा विराजमान हैं। दादा गुरुदेव श्रीमद् विजय राजेंद्रसूरिजी म.सा. की प्रेरणा से निर्मित दोनों जिनालयों की जिन प्रतिमाओं की अंजनशलाका वि. सं. १९६९ माघ शुक्ल १० रविवार को जालोर जिले के प्राचीन सियाणा तीर्थ के पास मंडवारिया नगर की प्रतिष्ठा महोत्सव के अवसर पर गुरुदेवश्री के प्रथम पट्टधर चर्चाचक्रवर्ती आ. श्री. घनचंद्रसूरिजी के करकमलों से संपन्न हुई। दोनों मंदिर बनकर तैयार थे, मगर आपसी मनमुटाव के चलते प्रतिष्ठा नहीं हो पा रही थी। गुरुदेवश्री के चतुर्थ पट्टधर व्याख्यान वाचस्पति श्री यतींद्रसूरिजी के बारंबार प्रयास से यह दूरियां खत्म होने लगी। वि. सं. १९८५ के पौष शुक्ल 7 को (गुरु सप्तमी पर) गुरुदेवश्री के तीसरे पट्टधर साहित्य विशारद विदयाभूषण आ. श्री भूपेन्द्रसूरिजी का आगमन हुआ और इंतजार की घड़िया खत्म हुई। आपश्री के अथक प्रयास एवं उपदेश से दोनों तडों में सामंजस्य हुआ एवं तुरंत प्रतिष्ठा की तैयारियां प्रारंभ हुई। वि. स. १९८५ के फाल्गुन वदि ५ गुरुवार को, मंगल वेला में प्रभु प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा संपन्न हुई। माघ शुक्ल १३ से अष्टाहिन्का महोत्सव प्रारंभ हुआ। महावीर स्वामी जिनालय की ध्वजा श्री रामाजी वेदमुथ्था परिवार एवं आदिनाथ जिनालय की ध्वजा श्री हरकाजी पुनमिया परिवार ने चढाई। बाद में महावीरजी मंदिर के गूढ मंडप में प्रतिष्ठित श्री शांतिनाथादि जिनबिंबों की अंजनशलाका प्राणप्रतिष्ठा वरकाणा तीर्थ के वि. स. १९५१ माघ सुदि ५ (वसंत पंचमी) गुरुवार के प्रतिष्ठोत्सव पर भट्टारक श्री राजसूरिजी के हस्ते संपन्न हुई और आदिनाथ दादा मंदिर के रंगमंडप में दोनों ओर की पाशर्वनाथ प्रभु की प्रतिमाओं की अंजनशलाका प्राणप्रतिष्ठा बागरा नगर के वि. सं. १९९८, मार्गशीर्ष शु. १०, शुक्रवार के प्रतिष्ठोत्सव पर आ. श्री यतींद्रसूरिजी के हाथों संपन्न हुई।


भूति सिलावटी व गोडवाड का एक प्राचीन नगर है। पहले वर्तमान धर्मशाला के पास छोटे गृहमंदिर में पूजा-अर्चना की जाती थी। गांव में दो जागीरदारी थी, जिससे दोनों तरफ एक-एक जिनमंदिर का निर्माण हुआ। श्री आदिनाथ प्रभु की प्रतिमा अत्यंत चमत्कारी है। दिन में तीन रूप बदलती है। प्राय: बाल्य रूप, मध्याह् में युवा तथा सायंकाल में प्रौढ का रूप धारण करती है। वि. सं. १९८८ में गुरुदेवश्री के शिष्य आ. श्री गुलाबविजयी का प्रथम चातुर्मास हुआ। वि. सं. १९९६ में देवीचंदजी रामाजी परिवार द्वारा आ. श्री यतींद्रसूरिजी का चातुर्मास हुआ, जिसके बाद श्री संघ की विनती पर वि. सं. १९९६ पौष शुक्ल ८ गुरुवार दि. २५.१०.१९३९ को महोत्सवपूर्वक गुरुदेव श्री राजेंद्रसूरिजी की अलौकिक गुरुमूर्ति का अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव संपन्न हुआ एवं इस महोत्सव पर एक भाविक गुलाबचंद को दीक्षा प्रदान कर मु. श्री लावण्यविजयजी नामकरण किया। वि. सं २००३ को मिश्रीमलजी प्रताप वेदमुथ्था परिवार द्वारा आयोजित चातुर्मास के बाद मु. श्री देवेन्द्र विजयजी का दीक्षा महोत्सव संघवी परिवार द्वारा संपन्न हुआ।


वि. सं. १९९९ के मगसर शुक्ल ७ को आ. श्री यतींद्रसूरिजी की निश्रा में संघवी देवीचंदजी रामाजी का गोडवाड़ पंचतीर्थी का छ:री पालित संघ निकला, इस संघ के दरम्यान वर्तमान सा. श्री संघवणश्रीजी का बाली में जन्म हुआ था, इसलिए इनका नाम सा. संघवणश्रीजी रखा गया। वि. स. १९७४ के आषाढ़ शुक्ल २ को गुरुदेवश्री के शिष्य बालीरत्न मु. श्री चंद्रविजयजी व हर्षविजयजी एवं सा. प्रवर्तिनी श्री प्रेमश्रीजी के हस्ते भूति निवासी पूनमचंदजी वेदमुथ्था की पुत्री श्रीमती पेपाबाई व वेदमुथ्था खीमराजजी की पुत्री श्रीमती किशनीबाई को भूति में महोत्सवपूर्वक दीक्षा प्रदान कर क्रमश: सा. श्री हीरश्रीजी एवं सा. श्री हुलासश्रीजी नामकरण हुआ। इनमें से सा. हीरश्रीजी जीवन के अंतिम १४ चातुर्मास भूति में करके वि. स. २०४५ प्रथम ज्येष्ठ वदि ८, सन् १९८८ ई. को भूति में स्वर्गवासी बने। भूति से कुल २ पुरुष व ५ महिलाओं ने दीक्षा ग्रहण की।

श्री जैन नवयुवक मंडल: यह भूति जैन संघ की प्रमुख सहयोगी संस्था है, जिसके तत्वावधान में हर वर्ष मुंबई में सुचारु रूप से स्नेह मिलन का कार्यक्रम होता है। प्रति वर्ष पौष शु. गुरु सप्तमी को गांव में त्रिदिवसीय मेला होता है, साथ ही हंजाबाई गौशाला बेडा के सहयोग से पशु चिकित्सा शिविर के भव्य आयोजन में सैकड़ों पशुओं का इलाज होता है। हर वर्ष फाल्गुन वदि ५ को होने वाले त्रिदिवसीय मेले में दोनों मंदिरो की ध्वजा लाभार्थी परिवार द्वारा चढाई जाती है। गत अनेक वर्षों से संघवी राजूभाई व उनके सहकारी हर प्रोग्राम की व्यवस्था करते हैं। ग्रंथ के संपादक संघवी विमलचंद आनंदराजजी वेदमुथ्था का यह पैतृक गांव है।


राजकीय पार्वतीबाई मिश्रीमलजी वेदमुथ्था हाईस्कूल: रामाजी परिवार द्वारा राजकीय पार्वतीबाई मिश्रीमलजी वेदमुथ्था हाईस्कूल का निर्माण पुत्र स्व. सुभाषजी वेदमुथ्था द्वारा करवाया गया है। ‘बैंक ऑफ इंडिया’ की शाखा का भूति में होना गांव के लिए गर्व की बात है। आसपास के ५० किमी. के दायरे में भी ऐसा राष्ट्रीयकृत बैंक नहीं है। आसपास के अनेकों गांवों के जरूरतमंदों को यहां ऋण वितरण एवं राष्ट्रीय योजनाओं की अनेक राशि (सब्सिडी) लाभार्थियों के खाते में सीधे जमा होती है। गांव में जैन मंदिरों के अलावा श्री महादेवजी व श्री हनुमानजी के मंदिर हैं। हॉस्पिटल, दूरसंचार, पानी योजना, सहकारी सोसायटी, पोस्ट इत्यादि अनेक सुविधाएं उपलब्ध हैं। आवागमन हेतु फालना, पाली व जालोर से बसों की अच्छी सुविधाएं हैं। पास ही ३ कि.मी. दूर अति प्राचीन ओलावती नगरी की पहाडी के तलहटी में कवलां तीर्थ हैं। जहां वि.स. १११ की प्रतिष्ठित श्री आदिनाथ दादा की प्रतिमा स्थापित है। २००० वर्ष से अधिक प्राचीन तीर्थ पर वर्तमान में जैनों का एक भी घर नहीं है। सिलावटी पट्टी के प्रतिनिधि यहां की व्यवस्था संभालते हैं। होली यहां का मुख्य त्योहार है। इस मौके पर सामूहिक गैर नृत्य के साथ महिलाओं द्वारा ‘धुम्मर नृत्य’ होता है।


मार्गदर्शन: यह तीर्थ हाईवे पर सांडेराव से २७ किमी. फालना रेलवे स्टेशन से ४० किमी., जोधपुर हवाईअड्डा से १६० किमी. आहोर से ३५ किमी. जालोर से ५२ किमी. सुमेरपुर शिवगंज से ४० किमी प्राचीन तीर्थ कवलां से ५ किमी. और राणकपुर तीर्थ से ७५ किमी. दूर स्थित है। आवागमन हेतु फालना से सीधी प्राइवेट बसें हर दो घंटे में मिलती है। टैक्सी द्वारा सांडेराव, तखतगढ, रानी, फालना से पहुंचा जा सकता है।


सुविधाएं:महावीरजी मंदिर के पास विशाल धर्मशाला, दो छोटी धर्मशालाएं एवं उपाश्रय की व्यवस्था है। ठहरने हेतु दो मंजिल की सुंदर व आधुनिक शैली की १२ कमरों व हॉलयुक्त धर्मशाला तथा भोजनशाला का निर्माण पूर्णता की ओर है। नियमित भोजनशाला व आयबिल की व्यवस्था है।

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