


भीमालिया

राजस्थान में पश्चिम रेलवे के अहमदाबाद-दिल्ली लाईन पर सोमेसर रेलवे स्टेशन से १० कि.मी. और भीमालिया रेलवे स्टेशन से १ कि.मी. दूर स्थित 'भीमालिया’ नगर में नवनिर्मित श्वेत आरस पाषाण से कोरणीयुक्त शिखरबद्ध जिनमंदिर में अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर मरूदेवानंदन, श्वेतवर्णी, १५ इंची, पद्मासनस्थ मूलनायक श्री आदिनाथ प्रभु एवं श्री पार्श्वनाथ प्रभु आदि जिनबिंबों एवं देवी-देवताओं की प्रतिमाओं की अंजनशलाका प्रतिष्ठा ज्योतिष शिल्पज्ञ, प्रतिष्ठा शिरोमणी आ.श्री. पद्मसूरिजी आ.ठा.के वरद हस्ते वीर नि.सं.२५३६, शाके १९३१, वि.सं.२०६६ द्वि वैशाख सुदि १०, रविवार दि. २३ मई २०१० को प्रात: हर्षोल्लास से संपन्न हुई। इसके चार दिन पूर्व प्रतिष्ठोत्सव पर बुधवार दि. १९.५.२०१० को महाराष्ट्र अमरावती निवासी मुमुक्षु श्री मंगेशकुमार रामलालभाई सोलंकी की भागवती दीक्षा संपन्न हुई। मुमुक्षु गुरूदेवश्री के शिष्य मु.श्री निलेशचंद्र विजयजी के छोटे संसारिक भाई है।
मंदिर निर्माण के पूर्व वि.सं. २०६४ माघ वदि ५, बुधवार, दि.२४.१.२००८ को आ.श्री. पद्मसूरिजी के शिष्य मु.श्री. प्रवीण विजयजी आ.ठा. की निश्रा में खाद मुहुर्त, भूमि पूजन और शिलान्यास विधि-विधान से कोठारी परिवार द्वारा सुसंपन्न हुआ था।
प्रतिमा लेख... संवत् ।....। रा असाढ सुद... सूरजवार, श्री रीसबदेव बिंब करापीतं... श्री विजय महेन्द्रसूरिजी...। अक्षरों में लाल रंग बराबर नहीं भरा होने से थोड़ा लेख अस्पष्ट है।
'जैन तीर्थ सर्वसंग्रह’ ग्रंथ के अनुसार, श्री संघ ने सं. १८५० के लगभग शिखरबंध जिनालय का निर्माण करवाकर मूलनायक श्री श्रेयांसनाथ प्रभु सह पाषाण की ६ और धातु की २ प्रतिमाएं स्थापित करवाई। पहली ६० जैनी, एक उपाश्रय और एक धर्मशाला थी।
अतीत के पन्नों पर : ऐसा उल्लेख मिलता है कि द्वापर युग में, महाभारत काल में वनवास के समय पांचों पांडव इस भूमि पर आये थे और जिस जगह पर सर्वप्रथम भीम के पैर पड़े थे वहां उनकी स्मृति में एक मालिया बनाया गया था। तभी से इस गांव का नाम भीमालिया पड़ा। आज भी वर्तमान गांव के नि·ट पहाड़ी के पास इसके अवशेष मौजूद है। कालांतर में यहां भोमिया राजपूतों का अधिपत्य हुआ। तब इस गांव में सभी जातियों के करीब ८००० घर थे, जिसमें जैनों के करीब ४०० घर थे।
समय बीतता गया। चूंकि यह पहाड़ी के ठीक नीचे बसा था इसलिये उस समय वर्षा के पानी के संग्रह हेतु यहां एक बांध बना हुआ था। एक बार भयंकर बाढ आ गई, जिसमें पूरा गांव बह गया और पुन: इस गांव को ठाकुर साहब चैलसिंहजी चोपावत ने वर्तमान जगह पर बसाया।
सन् १८५७ ई. के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में आऊवा ठाकुरों का साथ यहां के ठाकुर केसरसिंहजी ने भी दिया था। उसके पश्चात ठाकुर भेरूसिंहजी ने गांव की व्यवस्था का भार संभाला और एक बार जब पूरे राजस्थान में भयंकर अकाल पड़ा तो उन्होंने पशुओं के लिये, अपने पास संग्रहीत चाराघरों को सभी के लिये खोलकर जीवदया का अनुपम उदाहरण पेश किया। अकाल के कारण पशु-पक्षी एवं जन-जन दाने के लिये तड़प रहें थे, तब सेठ रायचंदजी पूनमचंदजी बाफना ने अपने अनाज से भरे गोदामों को लोगों के लिये नि:स्वार्थ भाव से खोलकर, हर घर में रोज ४ पायली (एक प्रकार का माप) अनाज दान करते हुए लोगों की जान बचाई थी। गांव की कुलदीपिका और श्री पुखराजजी कंकु चौपड़ा की सुपुत्री पद्माबेन ने बैंगलोर में दि. २३.१.१९७९ को दीक्षा ग्रहण कर सा.श्री स्मृतिप्रज्ञाश्रीजी की शिष्या के रूप में सा. श्री शीलप्रज्ञाश्रीजी के नाम से प्रसिद्धि पाई।
जीर्णोद्धार के पहले मंदिरजी की ध्वजा सेठ श्री हजारीमलजी सियाल की थी, जो कि पुन: अब उनके परिवार के ही श्री महावीरजी कमलकुमारजी सियाल परिवार की है। वर्तमान में जैन मंदिर के अलावा अन्य धर्मावलंबियों के भी अनेक मंदिर है, जिसमें १००० वर्ष प्राचीन श्री चारभुजानाथजी का मंदिर प्रसिद्ध है। आज जैनों की ५० घर हौती (ओली) व ३०० की जैन संख्या है। कुल १२०० घरों की बस्ती में कुल ५००० की जनसंख्या है। वर्तमान जैन मंदिर करीब ४०० वर्ष प्राचीन है, जिसका जीर्णोद्धार समय-समय पर होता रहा है। श्री तपागच्छ जैन उपाश्रय का उद्घाटन आषाढ शु.६, शुक्रवार दि. १५.७.१९८३ को हुआ।
१०वीं तक सरकारी स्कूल, ८वीं तक इंग्लिश मीडियम, आयुर्वेदिक सरकारी चिकित्सालय, नर्सधारा, ढारीया व हेमावास बांध से सिंचाई व्यवस्था, पोस्ट आदि सुविधाएं उपलब्ध है। गांव दो पहाड़ी से जुड़ा है। जोगमाया माता मंदिर पहाड़ी व २ कि.मी. पर चारभुजा मंदिर की पहाड़ी व २ कि.मी. पर चारभुजा मंदिर की पहाड़ी है। पुलिस चौकी बांता रघुनाथगढ में है।
मार्गदर्शन: पाली-नाडोल मेगा हाईवे (राज्य महामार्ग नं.६७) पर सोमेसर रेलवे स्टेशन से ९ कि.मी. और भीमालिया रेलवे स्टेशन से मात्र १ कि.मी. की दूरी पर, भीमालियां गांव बसा है। यहां से पाली ४२ कि.मी. तथा जोधपुर हवाई अड्डा १२० कि.मी. दूर स्थित है। मारवाड़ जंक्शन नजदीक का बड़ा शहर और रेलवे स्टेशन है।
सुविधाएं: मंदिर के पास धर्मशाला में २ कमरे और एक हॉल बने है। १० सेट बिस्तर और उपाश्रय में ६ कमरे व बड़ा हॉल है। भोजनशाला है। न्याति नोहरा में ५०० लोगों तक भोजन की व्यवस्था होती है।