


बालराई

राजस्थान प्रांत के पाली जिले के गोड़वाड़ क्षेत्र में राष्ट्रीय राजमार्ग क्र. 14 पर स्थित गांव 'बालराई' सुकड़ी नदी के किनारे बसा है। सबसे पहले सुराणा और सोनीगरा नामक दो परिवार जोधपुर रियासत में चाणोद ठिकाने से जुड़े बालराई नगर में आए और अपनी चतुराई से यहां के ठाकुर (राजा) से अच्छे संबंध बनाकर कारोबर करने लगे। धीरे-धीरे जैन परिवारों की संख्या भी बढ़ने लगी। शुरुआत का एक छोटा-सा पौधा वटवृक्ष बन गया। कुछ परिवार व्यवसाय के लिए बेंगलूरु, मद्रास और मुंबई जाकर सेट हो गए।
मरुधर में स्थायी निवासियों ने पूजा-अर्चना हेतु, स्व. ओटरमलजी भगाजी के निजी मकान में श्री सिध्दचक्रजी का गट्टा स्थापित करके अपनी धर्म उपासना करने लगे। गांव की पुण्याई ने प्रभाव दिखाया और उन दिनों स्व. श्री शेषमलजी पूनमचंदजी सुराणा के मकान की नींव खोदते समय एक श्यामवर्णी पाषाण की श्री पार्श्वनाथ प्रभु की छोटी सी प्रतिमा भूगर्भ से निकली, जिसे सिध्दचक्रजी के पास स्थापित करके पूजा-वंदना प्रारंभ हुई।
तत्पश्चात् वर्तमान धर्मशाला की जगह वाली जमीन, जहां पर उस समय में धर्मशाला एवं घर मंदिर दोनों ही बनाए गए थे, श्री पूनमचंदजी सुराणा की तरफ से श्री संघ को भेंट में प्राप्त हुई। श्री संघ को भेंट में प्राप्त हुई। श्री संघ के अग्रणी लोगों द्वारा जयपुर से मूर्तियां लाकर एवं खिमेल (सिंहवल्ली) गांव के प्रतिष्ठोत्सव प्रसंग पर पू. आ. श्री विजयानंदसूरीजी के शिष्य आ. श्री. कमलसूरिजी के पट्टधर जैनाचार्य आ. श्री लब्धिसूरीश्वरजी के कर कमलों से वीर नि.सं. 2469, शाके 1864, वि. सं. 1999, माघ शु. 11 सोमवार दि. फरवरी 1943 को अंजनशलाका प्रतिष्ठा संपन्न करवाकर उन्हें विधिवत बालराई लाया गया और मु. श्री चंद्रप्रभुस्वामी, श्री संभवनाथजी एवं श्री विमलनाथजी को शुभ मुहूर्त की मंगल बेला में घर मंदिर में प्रतिष्ठित किया गया। इस कालावधि में गांव में सभी लोगों में शांति एवं धन-धान्य की वृध्दि रही एवं शांतिपूर्वक समय बीतता रहा।
'जैन तीर्थ सर्वसंग्रह' ग्रंथ के अनुसार, श्री संघ द्वारा बाजार में धाखाबंध सह पाषाण की एक प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जा रही थी। उन दिनों यहां 68 जैन और एक उपाश्रय था। इस तथ्य से उपरोक्त बातें मिलती हैं। करीब 28 साल बाद सं. 2027 में वर्तमान मंदिर की पुण्यभूमि श्री देवीचंदजी केसरीमलजी सुराणा परिवार की तरफ से श्री संघ को भेंट स्वरुप प्राप्त हुई। यहां पर मंदिर निर्माण का निर्णय कर सं. 2027 या 2028 में गोड़वाड़ के जोजावर रत्न आ. श्री जिनेंद्रसूरिजी की निश्रा में खात मुहूर्त संपन्न हुआ। मगर प्रतिष्ठा आपश्री के हाथों संपन्न न हो सकी, क्योंकि आप वि. सं. 2029, जेठ वदि 5, मंगलवार, दि. 22 मई 1973 को शिवगंज में स्वर्गवासी हो गए। समय के साथ जिनालय का कार्य पूर्ण गति से चलता रहा। देवविमान स्वरुप देदीप्यमान, श्वेत पाषाण से निर्मित, भव्य शिखरबध्द कलात्मक जिनप्रासाद में सभी प्राचीन जिनबिंबो को मूलगंभारे में, नूतन कोरणीयुक्त परिकर में श्वेतवर्णी 21 इंच पद्मासनस्थ मूलनायक श्री चंद्रप्रभुस्वामी आदि प्रतिमाओं के साथ ही 4 नूतन जिनबिंबों एवं अधिष्ठायक देवी-देवताओं की अंजनशलाका प्रतिष्ठा वीर नि. स. 2501, शाके 1896, वि.स. 2023 येष्ठ शुक्ल 10, बुधवार, दि. 18 जून 1975 को विजय मुहूर्त में 12.39 बजे आ. श्री जिनेन्द्रसूरिजी के पट्टधर और शिष्य श्री पद्मविजयजी (वर्तमान में आचार्य) आ. ठा. की पावन निश्रा में महामहोत्सव पूर्वक संपन्न हुई। उस जमाने में हेलिकॉप्टर द्वारा पुष्पवर्षा पाली जिले के ग्रामीण इलाके में प्रथम बार थी। 20 वर्ष बाद रावला के पास सुराणा परिवारों की कुलदेवी श्री सुसवाणी माता के शिखरबध्द श्वेत पाषाण से निर्मित मंदिर की प्रतिष्ठा आ. श्रीपद्मसूरिजी आ.ठा. की निश्रा में वीर नि.सं. 2521, वि.सं. 2051, शाके 1916, वैशाख सुदि 15, पूर्णिमा, रविवार, दि. 14 मई, 1995 को महोत्सवपूर्वक संपन्न हुई।
पुन: 16 वर्षो के पश्चात् जिनालय में नूतन निर्मित देवलियों में अधिष्ठायक देव श्री नाकोड़ा भैरवदेव एवं अधिष्ठायिका शासनरक्षिका मां पद्मावती आ. ठा. 7 की पावन निश्रा में वीर नि. सं. 2537, शाके 1932, वि. सं. 2067, आषाढ़ सुदि 2, शनिवार, दि. 02 जुलाई, 2011 को हर्षोल्लास के साथ संपन्न हुई। प्रतर्िवष्ज्ञ जेठ सुदि 10 को श्री घेवरचंदजी चुन्नीलालजी सुराणा परिवार ध्वजा चढ़ाते हैं। यहां की महलनुमा हवेलियां आकर्षक को केंद्र हैं। वर्तमान में बालराई नगर एक सुखी-संपन्न गांव है।
गांव में हाईस्कूल, बालिका विद्यालय एवं 3 बालविद्यालय, आयुर्वेदिक हॉस्पीटल, पुलिस चौकी एन्दलागुड़ा, ग्रामी बांध से सिंचाई, दूरसंचार, डाकघर आदि सभी सुविधाएं हैं। नृसिंह धारा, हनुमानजी, माताजी के अन्य मंदिर यहां पर है। 5000 की कुल जनसंख्या में जैनों की आबादी 300 के करीब है। 60 घर हौती (घर ओली) है। यहां से 2 श्राविकाओं ने दीक्षा ग्रहण कर कुल और गांव का नाम रोशन किया है। गांव का श्री डोवेश्वर प्रवेश द्वार विशाल एवं आकर्षक बना है। श्री जैन युवक संघ और श्री चंद्रप्रभु महिला मंडल यहां की सहयोगी संस्थाएं हैं। श्री डोवेश्वर महादेव: नेशनल हाईवे पर बालराई कॉर्नर पर प्राचीन डोवेश्वर महादेवजी का मंदिर जन-जन की आस्था का केंद्र है। यहां श्री डावारामजी देवासी ने जीवित समाधि ली थी। प्रतिवर्ष चैत्र मास में यहा मंला लगता है। बड़ी संख्या में लोग यहां दर्शनार्थ आते हैं। मार्गदर्शन: नेशनल हाईवे क्र. 14 पर स्थित बालराई रानी स्टेशन से 20 कि.मी., पाली से 35 कि.मी. सांडेराव से 20 कि.मी., फालना स्टेशन से 32 कि.मी. और जोधपुर हवाई अड्डे से 115 कि.मी. दूर स्थित है। यहां आवागमन के लिए सरकारी और प्रायवेट बसों के साथ-साथ टैक्सी, ऑटो आदि की भी अच्छी सुविधाएं उपलब्ध हैं।
सुविधाएं: श्री सुसवाणी भवन, श्री जैन भवन, श्री जैन धर्मशाला, जैन आराधना भवन में ठहरने की अच्छी सुविधा है। आधुनिक व त्रिमंजिली, सेंट्रल वातानुकूलित 6 कमरों के साथ नई धर्मशाला निर्माण पूर्णता के निकट है। जैन भोजनशाला की उत्तम व्यवस्था है।