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सुरेश मुथामजबूत मेहनत से हर मुश्किल आसान

  • Writer: vibhachandawat1977
    vibhachandawat1977
  • Sep 28
  • 6 min read

चेन्नई स्थित एम.एम. ग्रुप के सुरेश मुथा हर हाल में हिम्मत, हर काम में मेहनत वाली अलग सोच के व्यक्ति है और अपनी इस सोच से ही उन्होंने समाज में और जीवन में ऊंचा मुकाम हासिल किया है।

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जीवन में हर किसी के लिए सफलता सबसे अहम होती है। यह सफलता अपने शुरू किए काम में अकसर आसानी से मिल जाती है। लेकिन पहले से ही श्रेष्ठतम साबित हुए काम को फिर से, नए सिरे से तराशकर, उसे नई उंचाई और नए आयाम देकर नए शिखर पर स्थापित करना वास्तव में बहुत मुश्किल काम होता है। और यह काम अगर अपने पारिवारिक, परंपरागत और स्थापित व्यापार को ऊंचा करने का हो, तो कुछ ज्यादा ही मुश्किल काम होता है। क्योंकि उसमें उस काम को विस्तार देने, उसका विकास करने और उसे ऊंचा उठाने के लिए हमारे पूर्वजों, अग्रजों और अपने से बड़े अनुभवी परिजनों के पुराने प्रतिमानों को तोडऩा जरूरी होता है। और अकसर वे पूर्व स्थापित प्रतिमान जब ध्वस्त होते हैं, तो रिश्तों की दीवारें भी दरकने के संभावनें जन्म लेती हैं। अकसर लोग रिश्तों के बिखरने के इसी डर से पुराने ढर्रे पर ही सारी व्यवस्था को जस का तस स्वीकार कर लेते हैं। लेकिन सुरेश मुथा किसी अलग मिट्टी के बने है। मुश्किल काम उन्हें सुहाता है और हर मुश्किल का सामना करने का उनमें माद्दा भी है। अपने पिता द्वारा स्थापित कारोबार को जब उन्होंने पुरानी पटरी से उठाकर फास्ट ट्रेक पर रखा, तो तकलीफें तो उन्हें भी बहुत आई, लेकिन तकलीफों की परवाह करे, उसका नाम सुरेश मेहता कैसे हो सकता है। सो, वे डरे नहीं, हिम्मत नहीं हारे और अपने मेहनत के दम पर अपने पिता द्वारा स्थापित एमएम ग्रुप को आज देश का सफलतम व्यावसायिक समूह बनाने में वे सफल रहे हैं।

बैंगलोर युनिवर्सिटी से सुरेश मुथा ने 1990 में जब इंडस्ट्रीयल प्रोडक्शन इंजीनियर की डिग्री ली थी, तो उन्हें सच में नहीं पता था कि कुछ दिन बाद अपने पिता का कारोबार संभालने जा रहे हैं। उस कारोबार में इंजीनियरिंग का तो कोई काम ही नहीं था। हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एग्जिक्युटिव एमबीए करके वे सन 1991 में वे चेन्नई आ गए। अगले ही साल 1992 में सिर्फ 24 साल की उम्र में अपने पिता मोहनलालजी मुथा द्वारा सन 1972 में शुरू किए गए कारोबार में हाथ बंटाना करना शुरू किया। उनके लिए यह खुशी की बात थी कि उन्होंने पारिवारिक व्यवसाय में उस दौर में प्रवेश किया, जब उनके पिता का कारोबार विकसित होने की दिशा में बढ़ रहा था। उस दौरान वे कई देशों में गए और उन्होंने दुनिया भर के सफलतम लोगों के बिजनेस मॉडल का गहन अध्ययन किया। किसी भी परंपरागत ढर्रे पर चल रहे व्यवसाय को अत्य़ाधुनिक तरीके से संवारना बहुत मुश्किल काम होता है। लेकिन उन्होंने कंपनियों के प्रबंधन से संबंधित देश विदेश में कई सेमिनारों के जरिए समझा कि आखिर कैसे बहुत कम समय में पारिवारिक व्यापार को नए सिरे से सफलता के साथ बहुत आगे ले जाया जा सकता है। उन्होंने अपनी मेहनत, लगन और अंतर्राष्ट्रीय सोच से अपने परिवार के परंपरागत व्यापारिक मूल तत्व को जिंदा रखते हुए पिता के व्यवसाय का जो विकास किया, वह आज सभी के सामने है। दक्षिण भारत में आज चेन्नई के एमएम ग्रुप को देश की बहुत बड़ी कंपनी के रूप में जाना जाता है।

एमएम ग्रुप के शिपिंग एवं रियल एस्टेट डिविजन के मुखिया सुरेश मुथा की प्रतिष्ठा आज एक सफलतम व्यवसायी के रूप में है। उनकी कंपनी एमएम ग्रुप को एक प्रतिष्ठित ब्रांड के रूप में जाना जाता है। इसी कारण सुरेश मुथा किसी परिचय के मोहताज नहीं है। उनका काम बोलता है, उनका नाम बोलता है और व्यापारिक विकास के साथ साथ उनके किए हुए सेवा कार्यों के चर्चे बोलते हैं। जीवन में वे सीखने के महत्व को जानते हैं, और हेनरी फोर्ड के  हर किसी से हर पल हर काम हमेशा सीखते रहने के सिद्दांत पर चलते हैं। वे मानते हैं कि जिस वक्त आपने सीखना और जानना छोड़ दिया, तभी से आपका विकास थम गया समझो। सीखने से उनको कतई परहेज नहीं है। पचास साल की अमुभवी ऊम्र और एक सफलतम व्यावसायी होने के बावजूद वे छोटी छोटी बात भी किसी से भी सीखने में कोई हिचक नहीं रखते। सुरेश मुथा कहते हैं कि यदि हमें किसी बात का पता नहीं हो, तो इस बात की कल्पना भी मत कीजिए कि उसके बारे में किसी से पूछने पर हमें वह क्या समझेगा। सवाल पूछने से मत घबराइये, क्योंकि सवालों के जवाब ही जिंदगी की सफलता के रास्ते खोलते हैं। उनकी सफलता का राज भी यही है कि वे जो नहीं जानते, उसे पूछने में संकोच नहीं करते और हर काम के लिए कड़ी मेहनत करते है। आप अगर कभी सुरेश मुथा से मिलेंगे, तो आपको एक सरल, सादगी पसंद और उनके हावभाव और व्यवहार में आपको कभी वो बड़ा आदमी दिखाई नहीं देगा, जो वे असल में हैं। ऐसा नहीं है कि उनके व्यवहार में नकलीपन है, बल्कि बड़े होने के बावजूद वे अपने बड़े होने का किसी को अहसास नहीं कराते। वे मानते हं कि जीवन में हर किसी के विनम्र होना चाहिए। फिर किसी को भी घमंड किसी बात का। वे मानते हैं कि व्यक्ति होना सबसे अहम बात है। इसलिए व्यक्ति को सिर्फ व्यक्ति होने का अहसास होना चाहिए और हमेशा इस बात का खयाल रखना चाहिए कि सामनेवाला भी आखिर व्यक्ति ही है। अपनी सफलता का श्रेय वे उन बातों को देते हैं, जो उनके जीवन में बहुत गहरे पैठ बनाए हुए हैं। वे कहते हैं कि अपने लक्ष्य को पाने के लिए हमें बाधाओं, असहमतियों, अस्वीकृतियों और त्याग के लिए हमेशा खुले मन के साथ तैयार रहना चाहिए। क्योंकि ये ही सफलता की असली चाबी है। एमएम ग्रुप अब सुरेश मुथा की कोशिशों से मरीन एवं रोड़ इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में भी प्रवेश करने जा रहा है।

कोई भी व्यक्ति यूं ही सफल नहीं हो जाता। हर किसी के जीवन में कहीं न कहीं, कोई एक तो मार्गदर्शक के रूप में होता ही है। सुरेश मुथा के जीवन में भी फेब्रिक के संस्थापक तत्वमासी दीक्षित एक प्रेरक एवं मार्गदर्शक के रूप में हमेशा रहे हैं, जिन्होंने उनके पारिवारिक परंपरागत व्यवसाय को प्रोफेशनल तरीके से विश्व पटल पर ले जाने के लिए प्रेरित किया। इसके साथ ही हार्वर्ड स्कूल के उनके साथियों को ग्रुप भी उनके सलाहकार के रूप में हमेशा साथ रहा है, जहां से व्यवसाय को विकसित करने के नए नए सुझाव मिलते रहते हैं। तत्वमासी दीक्षित के एक सेमिनार को वे अपने जीवन का महत्वूपर्ण मोड़ बताते हैं, जिसमें उन्होंने जाना कि व्यवसाय को संचालित करने से ज्यादा श्रेष्ठ उसमें समाहित हो जाना है। इसके साथ ही वैश्विक पटल पर बहुत तेजी से उभरती संस्था जैन इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन (जीतो) को भी वे अपने जीवन में बहुत महत्व देते हैं। वे मानते हैं कि जीतो को मैने जो कुछ दिया, उसके मुकाबले कई गुना ज्यादा जीतो से उन्हें मिला है। जीतो एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रेनिंग फाउंडेशन (जेएटीएफ) के प्रेसिडेंट सुरेश मुथा कहते हैं कि आनेवाले सालों में जेएटीएफ और प्रगति करेगा।

धार्मिक रीतिरिवाजों में बेहद विश्वास करनेवाले जैन कुल में 15 जुलाई 1967 को जन्मे सुरेश मुथा अहिंसा, अनेकांतवाद और अपरिग्रह के सिद्दांत में अपने जीवन के विश्वास को समाहित करते हैं। अपने भाईयों हंसराज मुथा एवं रमेश मुथा के साथ बेहद सफल व्यावसायिक जीवन से जिंदगी में बेहद ऊंचा मुकाम बनानेवाले सुरेश मुथा अत्याधुनिक विचारों के होने के बावजूद का धर्म में भी अटूट विश्वास है। सन 2002 में अपने पैतृक गांव मांडवला से शत्रुंजय गिरिराज के लिए 55 दिनों के छरी पालित संघ, सन 2007 में पालीताणा के गैटी पाग में नव्वाणु यात्रा सहित पांच माह के चातुर्मास का सन 2013 में आयोजन उन्होंने करवाया। तीन बेटियों श्रद्धा, समता और राशि के पिता सुरेश मुथा के जीवन में धर्मपत्नी मधु मुथा का विशेष सहयोग रहा है। सुरेश मुथा कहते हैं कि किसी भी समाज में संपर्क सेतु के रूप में समाचार पत्र सर्वश्रेष्ठ माध्यम होते हैं, और शताब्दी गौरव जिस तरह से समाज की अच्छी बातों, समाज के अच्छे लोगों और समाज के श्रेष्ठ लोगों के अच्छे विचारों को आगे बढ़ाने के लिए प्रयासरत है, वह अपने आप में अदभुत है। एक समाचार पत्र के रूप में शताब्दी गौरव मुंबई से निकलकर देश भर के जैन समाज को एकता के सूत्रपात में बांध रहा है, यह न केवल जैन इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन (जीतो) बल्कि समस्त समाज के लिए बेहतरीन प्रयास है।

सुरेश मुथा की व्यावसायिक सफलता और सामाजिक ख्याति को सिर्फ इसी से जाना जा सकता है कि उनकी कंपनी का दफ्तर दुनिया भर के अवॉर्ड्स और सम्मान चिन्हों से भरा पड़ा है। राजस्थानी एसोसिएशन तमिलनाडु की ओर से उन्हें राजस्थानी युवा रत्न अवॉर्ड मिला है, तो रागा प्रोजेक्ट के लिए कल्की सदाशिवम मेमोरियल अवॉर्ड भी उन्हें प्राप्त हुआ है। उनकी व्यावसायिक सफलता का सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि व्यापारिक क्षेत्र में उन्हें लगातार दस सालों तक साउथ रीजन के लिए सबसे प्रमुख इइपीसी अवॉर्ड मिला है एवं प्लेक्सकोंसिल तथा केपेक्सिल अवॉर्ड्स भी उन्होंने हासिल किया है। नए एवं युवा उद्यमियों को उनकी सलाह है कि सपने देखो, और उनको साकार करने के लिए पूरी निडरता के साथ हर हिम्मत से डटे रहो, लेकिन सफलता पा जाने के बाद घमंड को दूर रखो। क्योंकि विनम्रता, विनयशीलता और निराभिमानी होना ही जीवन की असली तासीर है। मेहनत करना सुरेश मुथा की प्रकृति में है और वे मानते हैं कि कड़ी मेहनत का कोई पर्याय नहीं है। वे मानते हैं कि यह कोई जरूरी नहीं कि आप कितने संगठित, सुनियोजित और साधन संपन्न है। लेकिन यह जरूरी है कि आप मेहनतकश हैं, तो साधन, नियोजन और संगठन भी आपके समर्थन में अपने आप खड़े हो जाएंगे।

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