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भादरलाऊ

  • Writer: vibhachandawat1977
    vibhachandawat1977
  • Sep 27
  • 3 min read

वीर प्रसूता राजस्थान प्रांत के पाली जिले में गोड़वाड़ क्षेत्र के राष्ट्रीय राजमार्ग क्र.१४ पर मंडली से वाया मेगा हाईवे क्र.६७ से वाया सोमेसर रेलवे स्टेशन ३२ कि.मी. एवं सोमेसर स्टेशन से मात्र ३ कि.मी.दूर सुमेर नदी के तट पर बसा है प्राचीन व ऐतिहासिक गांव 'भादरलाऊ’

गांव वालों के अनुसार, भादरलाऊ करीब ८०० वर्ष प्राचीन है। यहां पूर्व काल में नाथों का राज था और बाद में राव राजा फतेहसिंह की जागीरी थी। यहां सुमेर नदी के तट पर अति प्राचीन शिवमंदिर से लगकर ऐतिहासिक 'शिवकुंड’ नामक विशाल प्रसिद्ध बावड़ी में एक साथ ६ कुएं है, जिसपर एक ही समय में ६ अरट चलते थे। इसमें ३ पाज थे  १. बड़ा अरट, २. ढिमड़ी और ३. नौकड़ा। ढिमड़ी पाज को लेकर एक किंवदंती है कि उदयपुर दरबार की पाग (पगड़ी) राजसमंद झील पर धोबी धोने के लिये लाया था, मगर अचानक पाग हेज (नाली) में पानी में गिर गई और बहते-बहते अंदर चली गई। बाद में उस पाग की जांच कराई गई कि आखिर वह कहां गई। जांचकर्ताओं में किसी समझदार व्यक्ति ने सुझाव दिया कि उसी जगह हेज (नाली) में खाकला (बारीक चारा) डाला जाये और जहां पर खाकला निकलेगा वहीं पर पाग पहुंची होगी। बाद में जांच करने पर वह पाग इसी कुएं से निकली। इससे ज्ञात होता है कि राजसमंद झील से लगकर भादरलाऊ गांव की बावड़ी तक नाली बनी हुई है। पास का शिवमंदिर अत्यंत प्राचीन एवं दर्शनीय है। इस बावड़ी और शिवमंदिर के लिये भादरलाऊ पूरे जिले में प्रसिद्ध है।

जैन मंदिर : मूलनायक श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ प्रभु का मंदिर करीब ९० वर्ष पुराना है और संवंत १९८४ से पहले का बना हुआ है। उन दिनों जैनों के ६ परिवार थे। इनके पूर्वजों ने स्थानकवासी होते हुए भी जैन मंदिर बनाने का संकल्प ले·र भव्य जिनालय का निर्माण करवाया। निर्माण हेतु की गई टीप में अधिकतम टीप रू.१५५ थे और न्यूनतम टीप ५० पैसे थे। श्री छोगालालजी जेठमलजी, रतनचंदजी चाणौदिया परिवार, श्री देवीचंदजी कोठारी, श्री केशरीमलजी बोहरा, श्री फौजमलजी भारमलजी गांधी परिवार आदि सभी परिवारों ने तन-मन-धन से सहयोग देकर मंदिर का निर्माण पूर्ण करवाया और श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ प्रभु को विराजमान कर पूजा-अर्चना प्रारंभ की। 'जैन तीर्थ सर्वसंग्रह’ ग्रंथ के अनुसार, श्री संघ ने घुमटबंध मंदिर का निर्माण करवाकर वि.सं. १९५० में मूलनायक पार्श्वनाथ प्रभु को प्रतिष्ठित किया।

ग्रंथ के अनुसार, पूर्व में यहां कुल २० जैनी थे। कालांतर में श्री संघ ने जीर्णोद्धार करवाकर वीर.नि.सं. २४८९, शाके १८८४, वि.सं. २०१९, फाल्गुन सुदि ५, मार्च १९६३ को, श्वेतवर्णी, ११ इंची, पद्मासनस्थ, १०० वर्ष प्राचीन मूलनायक श्री पाश्र्वनाथ प्रभु को ऊँचे आसन पर प्रतिष्ठित किया। प्रतिष्ठाचार्य गुरोसा श्री लब्ध्सिागरजी यति बांता वाला थे। ३० वर्ष पूर्व जिनालय का नूतनीकरण कार्य संपन्न हुआ था। समय के साथ जिनालय जीर्ण होता गया। शांतीदूत गच्छाधिपति आ.श्री नित्यानंदसूरिजी आ.ठा. से प्रेरणा पाकर श्री संघ ने प्रतिमा का उत्थापन करवाकर और धर्मशाला में स्थापित कर जिनालय का संपूर्ण आमूलचूल जीर्णोद्धार प्रारंभ किया। नूतन मंदिर हेतु शिलान्यास वि.सं. २०६९, वैशाख वदि ६, बुधवार दि. १ मई २०१३ को, पू.आ.श्री. नित्यानंदसूरि आ.ठा. की निश्रा में त्रिदिवसीय महोत्सव से पूर्ण हुआ। वर्तमान में श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ, श्री पार्श्वपद्मावती माता और पार्श्व यक्ष प्रतिष्ठित है। श्री सुमतिनाथ, श्री सुपार्श्वनाथ, श्री सिमंधर स्वामी, श्री गुरू गौतमस्वामी आदि प्रतिमाएं नये से प्रतिष्ठित होगी। वर्तमान में जैनों के १२ घर है और गांव की कुल जनसंख्या ३००० के करीब है। तीन गांवों की पंचायत आज भी भादरलाऊ पंचायत के नाम से जानी जाती है। गांव में श्री महादेवजी, हनुमानजी, ठाकुरजी, रामापीर और जलाराम मंदिर है। स्कूल एवं आयुर्वेद अस्पताल हैं।

मार्गदर्शन: राज्य राजमार्ग क्र. ६७ (मेगा हाईवे) पर, सोमेसर रेलवे स्टेशन से मात्र ३ कि.मी. दूर और हाईवे से आधा कि.मी. अंदर भादरलाऊ हेतु, सरकारी व प्रायवेट बस, टैक्सी और ऑटों की सुविधा उपलब्ध है। सुविधाएं: छोटी सी धर्मशाला और उपाश्रय की सुविधा

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