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बांकली

  • Writer: vibhachandawat1977
    vibhachandawat1977
  • Sep 27
  • 3 min read

पाली जिले के अंतगर्त राष्ट्रीय राजमार्ग क्र. १४ पर सुमेरपुर कस्बे करीब १६ कि.मी. की दूरी पर स्थित है 'बांकली’ गांव। इसके बारे में कहा जाता हैं कि इसकी स्थापना संवंत् ८९५ मे हुई थी। पहले यह ग्राम खेड़ा देवी शक्तिमाता मंदिर के पास स्थित था। बांकली गांव में मूलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामीजी का मंदिर स्थित है। इस मंदिर की प्रतिष्ठा श्रीमद् विजय महेन्द्रसूरिजी आ.ठा. के हस्ते संवत् १९६५ में ज्येष्ठ सुदि ५, दि. ४ जून १९०८, गुरूवार को ९.२५ बजे शुभ मुहुर्त पर हुई थी। इस दिन से ही अखंड दीपक में काली ज्योति के बदले केसरी ज्योति आज तक निरंतर चालू है। श्री मुनि सुव्रतस्वामीजी की प्रतिमा संप्रति महाराज के काल की है, जो अंबाजी के करीब इडर नगर से २० कि.मी. दूर 'मोटा पोसीना’ गांव से लाई गई थी।

गांव के प्रवेश के पूर्व गांव की सीमा पर विशाल पेड़ के नीचे प्रतिमाजी को विराजमान किया गया था। इसी विशाल पेड़ के पास का पेचका (कुंआ), जो वर्षों से सूखा हुआ था, इस घटना के पश्चात आश्चर्यजनक ढंग से पानी से लबालब भर गया। आज भी इस कुंए में पर्याप्त पानी रहता है। इस प्रतिष्ठा के समय श्री नाथूसिंहजी देवड़ा बांकली गांव के अधिपति थे अर्थात श्री देवड़ा के साम्राज्य में ही यह प्रतिष्ठा हुई। इसे आचार्य जिनेन्द्रसूरिश्वरजी म.सा. की निश्रा प्राप्त थी।  सं. १९६४ के पूर्व मंदिरजी में सुपार्श्वनाथ, श्री चंद्रप्रभु एवं श्री पार्श्वनाथ प्रभु की तीन प्रतिमाएं विराजमान थी। प्रतिष्ठा के समय आहोर से श्री पार्श्वनाथ, श्री सुमतिनाथजी व श्रेयांसनाथजी तीनों की प्रतिमाएं मंगवाई गई, परंतु श्री पार्श्वनाथ प्रतिमा की दृष्टि ठीक नहीं होने से उनकी जगह 'मोटा पसीना’ से श्री मुनिसुव्रत स्वामीजी की प्रतिमा मंगवाकर, मूलनायक के रूप में प्रतिष्ठापित किये गये। उनके दोनों तरफ श्री सुमतिनाथ एवं श्री श्रेयांसनाथ प्रतिष्ठापित किये गये।

सं. १९९८ में फाल्गुन सुदि ३, बुधवार के दिन नगारा रूम के स्थान पर दो देहरियों का निर्माण किया गया, जिसमें एक में श्री चंद्रप्रभु, श्री पद्मप्रभु व श्री महावीर प्रभु के त्रिगड़े और दूसरे में मूलनायक श्री विमलनाथ, श्री संभवनाथ एवं श्री श्रेयांसनाथ त्रिगड़े प्रतिष्ठापित किये गये। साथ ही नये भोयरे में नूतन शंखेश्वर प्रभु व नूतन मुनिसुव्रत प्रभु के मध्य में श्री केशरियाजी आदिनाथजी का स्वर्णपट्ट प्रतिष्ठित किया गया। वरूणयक्ष नरदत्ता देवी रंगमंडप में एवं गोमुखयक्ष चक्रेश्वरी देवी छ: चौकी में प्रतिष्ठित हैं।

प्रदक्षिणा के गंभारे के पीछे पट्टाशाला में श्री गौतमस्वामी, श्री सुधर्मस्वामी व आचार्य श्रीमद् नीतिसूरीश्वरजी म.सा. की प्रतिमा प्रतिष्ठापित की गई है। इस प्रतिष्ठा को प.पू. आचार्य विजय हर्षसूरीश्वरजी तथा मुनिराज रामविजयजी, मुनि जयानंद विजयजी की निश्रा प्राप्त थी। निकट दीवार पर १३ पट्ट अंकित है।

बांकली गांव की विशेषता है कि यह प.पू. आचार्यदेव श्रीमद् विजय सुधांशुसूरिजी म.सा.  प.पू. आचार्यदेव श्रीमद् विजय विश्वचंद्रसूरीश्वरजी म.सा., प.पू.मुनिप्रवर श्रीमद् सुव्रतविजयजी म.सा. एवं प.पू. पंन्यास भद्रानंदविजयजी गणिवर के साथ-साथ १० श्रमणीवृंदों की जन्मस्थली है। अभी हाल ही में सन् २००७ में दि. २०.१२.२००७ से ३१.१२.२००७ के दरमियान, श्री मंदिरजी का शताब्दी महामहोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया गया। इस महोत्सव को बांकली रत्न प.पू. पंन्यास प्रवर भद्रानंदविजयजी पंन्यासजी की निश्रा प्राप्त थी। गांव में दो विशाल उपाश्रय है। वर्धमान आयंबिल खाता एवं भोजनशाला की सुविधा उपलब्ध है। जैन धर्मशाला, जैन भवन एवं अतिथी भवन जैसी वस्तुएं निवास हेतु उपलब्ध है। राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय के साथ-साथ पशु चिकित्सालय एवं महावर गौशाला आदि सभी संस्थाएं हमारे जैन साधार्मिक भाईयों के सहयोग से निर्मित है।

सुविधाएं: गांव में बांकलह जैन संघ आवास भवन, अतिथी भवन आदि धर्मशालाएं है, जिसमें सुविधायुक्त कमरे एवं हाल की व्यवस्था है। भोजनशाला की भी सुविधा है। मार्गदर्शन : बांकली के लिये सुमेरपुर से सभी प्रकार के परिवहन के साधन उपलब्ध है। यह जवांईबांध रेलवे स्टेशन से २२ कि.मी. एवं जोधपुर हवाई अड्डे से १६५ कि.मी. दूर है।

 

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