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बलाना

  • Writer: vibhachandawat1977
    vibhachandawat1977
  • Sep 27
  • 3 min read

राजस्थान प्रांत के पाली जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग क्र. १४ पर सांडेराव चौराहा से तखतगढ जाने वाली मुख्य सड़क पर १३ कि.मी. दूर एक नगर बसा है 'बलाना’। नगरजनों की जानकारी के अनुसार, यह ५००-६०० वर्ष प्राचीन गांव है। पहले यहां ४० घरों की बस्ती थी, लेकिन वर्तमान में केवल १६ घर ही है। पहले मंदिर काफी प्राचीन था और करीब डेढ़ कि.मी. में फैला हुआ था। इसकी नींव आज भी मौजूद है। बाद में यह जमीन में धंस गया था, फिर नये निर्माण द्वारा पुन: प्रतिष्ठा हुई। 'जैन तीर्थ सर्वसंग्रह ग्रंथ’ के अनुसार, रावले के पास मुख्य बाजार में श्री संघ ने वि.सं. १९४० में शिखरबद्ध जिनालय में मूलनायक श्री ८वें तीर्थंकर श्री चंद्रप्रभु स्वामी को प्रतिष्ठित करवाया। तब पाषाण की ३ धातु की ४ प्रतिमाएं स्थापित की गई। पहले यहां ५० जैनी और एक धर्मशाला थी।

श्री संघ के अनुसार, पहली प्रतिष्ठा, वीर नि. सं. २४५३, शाके १८४८, वि.सं. १९८३, ज्येष्ठ सु. ११, जून १९२७ को शिखरबद्ध जिनमंदिर में मूलनायक ८वें तीर्थकंर श्री चंद्रप्रभुस्वामी की श्वेतवर्णी २५ इंची, पद्मासनस्थ, सुंदर प्रतिमा की पू. मु. श्री कल्याणविजयजी आ. ठा. की निश्रा में हर्षोल्लास से संपन्न हुई थी। कालांतर में दूसरा जीर्णोद्धार करवाकर, गंभारे के पबासन में परिर्वतन करके पुन: प्रतिष्ठा वि.सं. २०४०-४५ के आसपास, पू. आ. श्री पूर्णानंदसूरिजी और पू. आ. श्री ह्रींकारसूरिजी आ.ठा. की पावन निश्रा में हुई और प्रतिमाओं को पुन: स्थापित किया गया। मगर ऐसी धारणा है कि यह पुन: प्रतिष्ठा सही ढंग से नहीं हुई। प्रतिष्ठाचार्य भी बाद में जल्दी देवलोकवासी हो गये।

प्रतिष्ठा शिरोमणि पू. आ. श्री सुशीलसूरिजी द्वारा कुछ त्रुटियां दृष्टिगोचर होने पर प्राचीन जिनमंदिर के जीर्ण-शीर्ण होने पर मूलनायक भगवान का वि.सं. २०४७, आषाढ शुक्ल ९, रविवार दि. १ जुलाई १९९० को उत्थापन कर जीर्णोद्धार कार्य प्रारंभ करवाया गया था।

मंदिर निर्माण में उचित मार्गदर्शन पू. आ.श्री नित्योदय सागरसूरिजी व पू.आ. श्री चंद्रानन सागरसूरिजी आ.ठा. का निरंतर प्राप्त होता रहा। आमूलचूल जीर्णोद्धार के १० वर्ष बाद सोमवार दि. ३० जुलाई २००१ को प्रतिष्ठा संबंधी जाजम के चढावें संपन्न हुए। श्री नेमिसूरिजी पट्ट परंपरा मे शासन प्रभावक, प्रतिष्ठा शिरोमणि पू. आ. श्री सुशीलसूरिजी व आ. श्री जिनोत्तमसूरिजी आ.ठा. की पावन निश्रा में वीर नि.सं. २५२८, शाके १९२३, वि.सं. २०२८, श्री नेमि सं. ५३ के मार्गशीर्ष कृष्ण ५, बुधवार, दि. ५.१२.२००१ के शुभ दिन बलाना नगर जीर्णोद्धार कृत नूतन निर्मित जिनप्रासाद में नूतन परिकर युक्त मूलनायक श्री संभवनाथ प्रभु की २७ इंची, श्वेतवर्णी, पद्मासनस्थ प्रतिमा सह श्री विमलनाथ व महावीरस्वामी आदि जिनबिंबों की अंजनशलाका प्रतिष्ठा एकादशाह्रींका महोत्सवपूर्वक संपन्न हुई।

इस समय प्राचीन मूलनायक श्री चंद्रप्रभु स्वामी को रंगमंडप के पास श्री सुमतिनाथ व श्री अजितनाथ सह एक ऊँची चौकी पर विराजमान किया गया। इस प्रतिष्ठा के बारे में भी यहां के वर्तमान निवासियों की राय अच्छी नहीं है। प्रतिष्ठा के बाद दिन-ब-दिन गांव खाली होता जा रहा है। ४० घरों से अब तक सिर्फ १७-१८ घर बचे है, बाकी पास ही तखतगढ आदि जगहों पर जाकर बस गये। प्रतिवर्ष मगसर वदि ५ को शा. बाबूलालजी कस्तूरजी जैन परिवार ध्वजा चढाते है। कारिया भाखरी दुजाणा के पास व निम्बरनाथ नदी के किनारे बसा बलाना की कुल जनसंख्या ८००० के करीब है। १०वीं तक स्कूल, हॉस्पीटल और श्री महादेवजी, माताजी, हनुमानजी, रामदेवजी व ठाकुरजी के मुख्य मंदिर है। पुलिस थाना तखतगढ से ७ कि.मी. दूर है।

मार्गदर्शन: नेशनल हाईवे क्र.१४ पर सांडेराव चौराहा से १३ कि.मी. फालना रेलवे स्टेशन से २५ कि.मी. पाली से ६८ कि.मी. और जोधपुर हवाई अड्डे से १५० कि.मी. दूर 'बलाना’  गांव स्थित है। सुविधाएं : श्री जैन न्याति नोहरा (जैन बगीची)  की विशाल भूमि पर शादी-ब्याह होते है। ५००० वर्गफीट का हॉल, ३ कमरे, रसोईघर आदि की उत्तम सुविधा है। २ धर्मशाला एवं उपाश्रय है, पर भोजनशाला की सुविधा नहीं है। मंदिर के सामने एक धर्मशाला में ३ कमरें और रसोईघर बना है।

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