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आना

  • Writer: vibhachandawat1977
    vibhachandawat1977
  • Sep 27
  • 4 min read

भारत देश सभ्यता, संस्कृति एवं धार्मिक परंपरा की दृष्टि से विश्व पटल पर आज भी श्रेष्ठ एवं पथप्रदर्शक माना जाता है। देश के अनेक अमूल्य धरोहरों में राजस्थान की भागीदारी कम महत्वपूर्ण नहीं है। राजस्थान में इतिहास का शौर्य, साधना, धर्म परायणता और दानशीलता की गौरवमय गाथाओं से परिपूर्ण है। राजस्थान के पाली जिला के अंतर्गत देसुरी तहसील में सुरम्य अरावली पर्वतमाला (खेतलाजी मगरी) की गोद में ब्राह्मी नदी के किनारे एक छोटा सा सुंदर गांव बसा है 'आना’

भूतकाल में 'आना’ गांव सोलंकी नरेश के वंशजो के अधीन रहा। सरदार समन्द बांध बनाते समय भींथड़ा महंतजी की जमीन बांध में लेने के एवज में मारवाड़ नरेश ने उन्हें 'आना’ गांव दिया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद आना, सारंग वास, सोनाणा और शोभावास इन चारों गावों को मिलाकर ग्राम पंचायत 'आना’ का गठन हुआ।

भौगोलिक एवं ऐतिहासिक महत्व के साथ-साथ धार्मिक दृष्टि से भी धनी 'आना’ गांव गोडवाड़ की जैन पंचतीर्थी राणकपुरजी, मुछाला महावीरजी, नारलाई, नाडोल व वरकाणा के नयनरम्य शाश्वत पौराणिक तीर्थ स्थानों के मध्य बसा हुआ है। गांव में दो सुंदर जैन मंदिर है। यहां श्वेताम्बर ओसवालों के बोरडिया चौधरी, जोजावरीया, सोलंकी, वेदमेहता, सुंदेशा मेहता, राजावत राठौड़, पुनमिया, पारेख आदि गोत्रों के ९० परिवार है। यहां से ७ पुण्यशाली आत्माओं ने संयम मार्ग पर दीक्षित होकर जैन जगत के कल्याण और दर्शन के प्रचार-प्रसार में योगदान दिया। 'जैन तीर्थ सर्वसंग्रह’ ग्रंथ के अनुसार, श्री संघ ने सं. १९०० लगभग शिखरबद्ध जिनमंदिर का निर्माण करवाकर मूलनायक श्री शांतिनाथ प्रभु की प्रतिष्ठा सह पाषाण की २ और धातु की २ प्रतिमाएं स्थापित करवाई। पहले यहां १०० जैन घर, एक उपाश्रय और एक धर्मशाला थी। श्री खीमराजजी मंदिर की वहीवट करते थे।

श्री शांतिनाथजी मंदिर : गांव के बीच बाजार में चारभुजाजी मंदिर के सामने श्वेत पाषाण से निर्मित छोटे से शिखरबद्ध जिन मंदिर में ८०० से ९०० वर्ष प्राचीन मूलनायक श्री शांतीनाथ प्रभु की श्वेतवर्णी, पद्मासनस्थ, १७ इंची प्रतिमा नूतन निर्मित परिकर में प्रतिष्ठित है। जिनालय की प्रथम प्रतिष्ठा, वीर नि. सं. २४५२, शाके १८४७, वि. सं. १९८२, वैशाख वदि २, गुरूवार, मई १८२६ को प्रतिष्ठा शिरोमणी गोडवाड़ जोजावर रत्न आ. श्री जिनेन्द्रसूरीजी आ.ठा. के वरद हस्ते हुई। कालांतर में मंदिर के जीर्ण-शीर्ण होने से ३५ वर्ष पूर्व इस मंदिर को पूज्य गुरूदेव के शुभ आशीर्वाद से सोमुपरा द्वारा २१ दिन में बनवाकर श्री आना जैन संघ ने स्वर्ण इतिहास रचा। जिनालय की पुन: प्रतिष्ठा वीर नि. सं. २५०४, शाके १८९९, वि.सं. २०३४, ज्येष्ठ शु. ११, शनिवार, कद. १७ जून १९७८ को शासन प्रभावक आ. श्री पद्मसूरिजी आ. ठा. की पावन निश्रा में हर्षोल्लास से संपन्न हुई।

श्री वासुपूज्य स्वामीजी मंदिर : गांव के मुख्य बाजार में श्री न्याति नोहरा भवन के पास करीब ६० वर्ष पूर्व श्री संघ ने नया मंदिर बनवाने कर निर्णय करके कार्य प्रारंभ किया। शिखरबद्ध निर्मित जिनप्रासाद में वीर नि. सं. २४८२, शाके १८७७, वि.सं. में पं. कल्याणविजयजी गणि आ.ठा. की पावन निश्रा में श्वेतवर्णी, २१ इंची, पद्मासनस्थ मूलनायक, पंचकल्याणक उत्तम भूमि चंपापुरी के राजा १२वें तीर्थंकर श्री वासुपूज्य स्वामीजी, श्री सुमतिनाथजी, श्री सुविधिनाथजी आदि जिनबिंबो, यक्ष-यक्षिणी प्रतिमाओं की अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सवपूर्वक भावोल्लास से संपन्न हुई।

श्री कुमारचक्र की वरकाणा में सं. २०१४, फा.सु. ३, शुक्रवार को पू. आ. श्री. समुद्रसूरिजी के हस्ते हुई। पंजाब केसरी, गोडवाड़ उद्धारक, शिक्षाप्रेमी आ. श्री वल्लभसूरिजी गुरू प्रतिमा की प्रतिष्ठा वि. सं. २०१५, वीर नि. सं. २४९४, ज्ये.कृ. ६ भृगुवार को पू.आ. श्री समुद्रसूरिजी के हस्ते संपन्न हुई। जिनालय की पुन: प्रतिष्ठा, वि. सं. २०३४, जेठ सु. ११ शनिवार, दि. १७.६.१९७८ को आ. श्री पद्मसूरिजी के हस्ते संपन्न हुई।

प्रतिष्ठा शिरोमणी आ. श्री पद्मसूरिजी, पंन्यास प्रवर मु. श्री इंद्ररक्षित विजयजी आ.ठा. की निश्रा में पंचाह्निका महोत्सव के प्रथम दिन वि.सं. २०६८, जेठ वदि ७, शनिवार, दि. १२ मई २०१२ को गुरू भगवंतों के मंगल प्रवेश के साथ नूतन निर्मित 'आराधना भवन’ का उद्घाटन प्रात: १०.३० बजे धूमधाम से संपन्न हुआ।

संयम पथ : गांव 'आना’ में कुल ७ दीक्षाएं संपन्न हुई है। श्री कानमलजी चुन्नीलालजी बोरडिया ने दि. ३०.४.१९६६ को दीक्षा ली और मु. श्री सुधर्मविजयजी बने श्री अंशीबाई पुनमिया ने दि. २५.५.१९६४ को दीक्षा ली और सा. श्री अशोकाश्रीजी का नया नाम धारण किया। श्री फूलचंदजी चुन्नीलालजी बोरडिया, पत्नी सौ. विमलाबाई, पुत्र श्री लोकेश और दो पुत्रियां चंदा एवं चारूलता ने कुल (कुल ५ दीक्षा) ग्रहण कर कुल व नगर का नाम जगत में रोशन कर दिया। पू. मु. श्री भव्यसेन विजयजी (फूलचंदजी), मु. श्री ललितसेन विजयजी (पुत्र लोकेश) ने पालीताणा रोड पर अपने दीक्षा प्रदाता गुरू आ. श्री मेरूप्रभसूरिजी की स्मृति में श्री मेरूविहार धाम (मु.लोलिया) का निर्माण करवाया है, जिसमें जिनमंदिर व उपाश्रय धर्मशाला का निर्माण हुआ है। आपश्री स्थायी रूप से वहीं विराजते है।

मार्गदर्शन : यह रानी रेलवे स्टेशन से ३० कि.मी. फालना से ४५ कि.मी. देसुरी से ९ कि.मी., नाडोल से १५ कि.मी. खेतलाजी २ कि.मी. जोधपुर हवाई अड्डे से १७० कि.मी. दूर स्थित है। यहां के लिये बस, टैक्सी और ऑटो की सुविधा मिलती है।

सुविधाएं : यहां अतिथि भवन में एक हॉल व ४ अटैच कमरे बने है। न्याति नोहरा, पेढी भवन, उपाश्रय श्री आराधना भवन एवं भोजनशाला की सुविधा है। पास ही २ कि.मी. दूर सोनाणा खेतलाजी में भरपूर सुविधा है।

 

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