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फालना

फालना

वीरों की कर्मभूमि राजस्थान की सुरम्य अरावली पर्वतमाला के आंचल में बसा मरुधर के गोडवाड क्षेत्र में स्थित ‘फालना’ का अपना एक विशिष्ट स्थान है। यदि फालना को धर्म और इतिहास की भव्यता का प्रथम द्वार कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। गोडवाड़ की हृदयस्थली फालना जहां हर क्षेत्र से जिनशासन प्रेमी परिवार आकर बसे हुए है और जो गेटवे ऑफ गोडवाड की उपाधि से अलंकृत है, ने शिक्षा के क्षेत्र में पूरे गोडवाड को गौरवान्वित किया है।


स्वर्ण मंदिर : यह उत्तर-पश्चिम रेलवे के मुंबई दिल्ली रेलमार्ग पर स्थित एक महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन है, जहां से पुरे क्षेत्र में सबसे ज्यादा आवागमन होता है। यह राष्ट्रीय राजमार्ग नं १४ के साण्डेराव से १२ कि.मी. दूर मीठडी नदी के पास बसा है। स्टेशन से लगकर मुख्य बाजार में स्वर्ण से मंडित त्रिशिखरी अलौकिक जिन मंदिर में श्याम वर्णी कलात्मक परिकर से युक्त मु. श्री शंखेश्वर पाशर्वनाथ प्रभु की सुंदर प्रतिमा प्रतिष्ठित है। इसकी प्रथम प्रतिष्ठा वि. सं. १९७० में भट्टारक आ. श्री मुनिचंद्रसूरिजी के करकमलों से हुई। कालांतर में जब इसके जीर्णोद्धार की आवश्यकता हुई तो आ. श्री जिनेन्द्रसूरिजी के पावन आशीर्वाद एवं निर्देशन से यह कार्य निर्विघ्न संपन्न हुआ, जिसमें आ. श्री पद्मसूरिजी व मुनिभूषण वलल्भदत्तजी (फक्कड़ महाराज) का अमूल्य सहयोग रहा।


वीर नि. स. २५०५ वि. सं २०३५, ज्येष्ठ शु १४, शनिवार, दि. ९ जून १९७९ को गोडवाड सादडी रत्न प. पू. आ श्री ह्रींकारसूरिजी, आ. श्री पद्मसूरिजी, मरूधररत्न श्री वल्लभदत्त विजयजी आ. ठा. की पावन निश्रा में मु. श्री शंखेश्वर पाशर्वनाथ, श्री शीतलनाथ एवं श्री नेमिनाथ आदि जिनबिंबों की प्रतिष्ठों संपन्न हुई। मुख्य ध्वजा के व स्वर्ण मंदिर उद्घाटन समारोह के लाभार्थी श्री निहालचंदजी फोजमलजी पुनमियां परिवार थे।


इसी मुहूर्त में आ. श्री वल्लभसूरिजी गुरुमंदिर की भी प्रतिष्ठा संपन्न हुई। इस मंदिर ने अपने रजत जयंती वर्ष में एक नया इतिहास रचा। इसने स्वर्ण मंदिर का आकार लेकर जैन समाज का प्रथम स्वर्ण मंदिर होने का गौरव प्राप्त किया।


इसका उद्घाटन वि. सं २०६० ज्येष्ठ सु. १४, बुधवार,दि. २.६.२००४ को आ. श्री चंद्राननसागरसूरिजी म.सा. आ. ठा की पावन निश्रा में तत्कालीन उपराष्ट्रपति श्री भैरोंसिंहजी शेखावत एवं मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधराराजे सिंधिया के करकमलों द्वारा संपन्न हुआ। इस वर्ष में ‘अतिथि गृह’ नूतन आधुनिक धर्मशाला एवं भोजनशाला का निर्माण हुआ, जिससे आज सैकडों लोग लाभान्वित हो रहे हैं। भोयरे के कांच मंदिर में विशाल पाशर्वनाथ प्रभु प्रतिमा के साथ प्रभु के १० भवों के आकर्षक पट बने हुए हैं। मंदिर के पास गुरु मंदिर में पंजाब केशरी गोडवाड उद्धारक श्री वल्लभसूरिजी की प्रतिमा, चरणयुगल इत्यादि स्थापित हैं। भायरे के द्वार के पास आचार्य श्री ललितसूरिजी के समाधी-स्थल पर छत्री में, चरण-पादुका स्थापित है। गुरुदेवश्री का स्वर्गवास वि.स. २००६, माघ शु, शुक्रवार, दि. २७.१.१९५० को खुडाला में हुआ था एवं दि. २८.१.१९५० को स्वर्ण मंदिर परिसर में अग्नि संस्कार हुआ, जहां आज छत्री बनी हुई है। वि.स. २०३५, ज्येष्ठ सु.१४. शनिवार , दि. ९.६.१९७९ को आ. श्री ह्रींकारसूरिजी के हस्ते प्रतिष्ठा संपन्न हुई।


श्री वल्लभगुरु व फालना : गोडवाड और वल्लभ मानो जैसे एक दूसरे के पूरक शब्द हैं। गोडवाड की धर्म व शिक्षा क्षेत्र की उपलब्धियां सभी आपश्री ही की देन है। वरकाणा, उम्मेदपुर व फालना इसके प्रमाण हैं। आप श्री के पट्टधर व गोडवाड से अज्ञान का नाश करने वाले आ. श्री ललितसूरिजी के हस्ते, वि. स. १९८६ सन् १९३२ ई. में श्री पाशर्वनाथ उम्मेद जैन बालाश्रम की उम्मेदपुर में स्थापना हुई।, जो बाद में सन् १९४० वि. सं. १९३८, माघ शु. ६ को किसी कारणवश, फालना स्थानांतरित किया गया। सन् १९४० -४१ में माध्यमिक शाला, १९४४ में हाईस्कूल, सन् १९५१ में इंटर कॉलेज सन् १९५८ में डिग्री कॉलेज के रूप में मान्यता प्राप्त करना इसका गौरवमय इतिहास है।


वि. स. २००६, माघ सु. १५,गुरुवार दि. २.२.१९५० को श्वेतांबर जैन कॉन्फ्रेंस संपन्न हुआ था। आपश्री का यहां चातुर्मास भी हुआ है। आज यहां ७२ फूट ऊचा वल्लभ कीर्तिस्तंभ, वल्लभ विहार, ललित कीर्तिस्तंभ विजयजी म.सा. की भी विशेष कृपा रही है।


फालना : नगरपालिका फालना-खुडाला एक प्रगतिशील नगर है। जहां आज के युग की हर सुविधा उपलब्ध है। होटल, सिनेमाघर, कॉलेज,दूरसचांर, मोबाइल टावर, मीडिया, पुलिस थाना, हास्पिटल, रेलवे स्टेशन, रोजवेज बस स्टैंड, छात्रावास, विभिन्न जाति धर्मों के प्रसिद्ध मंदिर, नजदीक ही निम्बोरानाथ प्रसिद्ध शिव मंदिर, तहसील कार्यालय बाली इत्यादि हर तरह की सुविधा के मद्देनजर आस-पास के गांवों से धीरे-धीरे परिवार यहां आकर बसने लगे है। शहरों की फ्लैट संस्कृति यहां भी बढने लगी है। गोडवाड के हर तीर्थ व गांव जाने हेतु यह प्रवेशद्वार के रुप में प्रसिद्ध है। हर जगह के आवागमन के साधन यहां सुलभता से हासिल हो जाते हैं।


श्री शांतिनाथजी मंदिर : फालना के महावीरनगर सागर कॉलोनी में नवनिर्मित शिखरबंध जिनालय में वि. स. २०५८, ज्ये. व. ६ रविवार दि. १३ मई २००१ को प्रतिष्ठा शिरोमणि आ. श्री सुशीलसूरिजी आ. ठा की निश्रा में, श्री अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव संपन्न हुआ था। वि. स. २०५६ के वै. सु. १५, शुक्रवार दि. ३०.०४.१९९९ को, खनन मुहूर्त व शिलान्यास संपन्न हुआ था। खीमराजजी चोपडा परिवार द्वारा मंदिर हेतु भूमि प्रदान की गई।


श्री सर्वोदय पाशर्वनाथ मंदिर : जब फालना में रेलवे नहीं थी, तब वर्षों पूर्व लोक छोटे से समूह में यहां बसने लगे थे। सन् १९८५ में रेलवे लाइन व स्टेशन बनते ही समय एवं समर्पण का यह वटवृक्ष फैलने लगा। आ. श्री पद्मसूरिजी ने नेहरू कॉलोनी के श्री संघ के निवेदन पर स्वयं की प्रेरणा से निर्मित ज्ञान मंदिर को मंदिरजी एवं उपाश्रय के रूप में श्री संघ को अर्पित किया। प्राचीन जाखोडा तीर्थ से चमत्कारिक व सुंदर श्री सर्वोदय पाशर्वनाथ की प्रतिष्ठित प्रतिमाजी को यहां स्थापित कर संघ उत्साह को बढाया। श्री संघ की विशाल शिखरबंध जिनालय की भावना जागी, नारलाई निवासी श्री जालमंदजी वोरा परिवार ने जिनालय हेतु अपनी भूमि संघ को समर्पित की। भूमिदान के मात्र १५ महीनों में मंदिर का निर्माण कर वि. सं. २०६३, वैशाख सुदि १०, गुरुवार दि. २६.४.२००७ को प्राचीन मु. श्री सर्वोदय पाशर्वनाथ सह नूतन अनेकों जिनबिंब, देवी-देवताओं की अंजनशलाका प्रतिष्ठा करीब ३२५ जिन मंदिरों के प्रतिष्ठाकारक आ. श्री पद्मसूरिजी आ. ठा. व आ. श्री विश्वचद्रसूरिजी के सानिध्य में संपन्न हुई।


श्री चौमुखा शंखेश्वर पाशर्वनाथ मंदिर : फालना साण्डेराव सडक पर अम्बिका नगरी में श्री सरेमलजी तिलोकचंजी पोरवाल परिवार द्वारा (कोशेलाव निवासी वनाजी केसाजी परिवार) निर्मित नूतन चौमुखी जिनालय में श्री शंखेश्वर पाशर्वनाथ प्रभु की प्रतिमाओं की वि. सं. २०६७, ज्येष्ठ सुदि ७, बुधवार, दि. ८.६.२०११ को आ. श्री पद्मसूरिजी के करकमलों से प्रतिष्ठा संपन्न करवाई। श्री सरेमलजी ने जीवन में अनेक अनुमोदीय कार्य करते हुए पृथक गांव कोशेलाव में स्वद्रव्य से सन् १९६१ में मुनिसुव्रत स्वामी का जिनालय बनाकर संघ को सुपुर्द किया था।


श्री नेमिनाथजी मंदिर : फालना साण्डेराव सड़क पर खालसा पेट्रोल पंप के पास अंबाजी नगर में विशाल भूखंड पर त्रिमंजिला का खौड निवासी शा. अचलाजी शिवराजजी मेहता परिवार द्वारा दि. २६ जनवरी १९७२ को शिलान्यास कर मंदिर निर्माण का कार्य प्रारंभ किया गया। पूर्व में प्राचीन श्री अम्बाजी देवी का मंदिर था। देवी द्वारा स्वप्न में मंदिर निर्माण की प्रेरणा पाकर इस अंबिका रथ मंदिर का निर्माण करवाकर (वि.स. २०५३ ) के माघ शुक्ल ११, सोमवार को नीति समुदायवर्ती आ. श्री अरिहंतसिद्धसूरिजी आ. श्री गुणरत्नसूरिजी तथा पं. पंन्यास श्री अरुणविजयजी के सानिध्य में इसकी मंगल अंजनशलाका प्रतिष्ठा संपन्न हुई। बाद में अनेक जिनबिंबो की अंजनशलाका वि. २०१४ फा. सु. ३ शुक्रवार को वरकाणा में आ. श्री समुद्रसूरिजी के हस्ते संपन्न हुई।


श्री शाश्वत चौमुखजी मंदिर : फालना के वल्लभ विहार में यह शाश्वत जिनमंदिर मु. श्री वल्लभदत्त विजयजी (फक्कड महाराज) की प्रेरणा से सेवाडी निवासी श्री सागरमलजी कोठारी, खुडाला के श्री मुकंदचंदजी परमार, शिवगंज के पुखराजजी दोशी व पोमावा निवासी श्री हीराचंदजी ठाकोर ने बनवाकर, श्री संघ को अर्पित किया। इसकी प्रतिष्ठा शाके १८९१, वीर नि. स. २४९६, विक्रम स. २०२६, मार्ग सुदि ६, रविवार दिसंबर १९७० को आ. श्री समुद्रसूरिजी आ. ठा के वरद हस्ते मु. भगवान श्री ॠषभदेव प्रभु शाश्वत चौमुखी प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा हुई। गुरुमंदिर में वीर नि. स. २५२९, वि. स २०५९, माघ शु. १४, रविवार दि. १५.२.२००३ को पंजाब केसरी आ. श्री वल्लभसूरिजी की गुरु प्रतिमा की प्रतिष्ठा आ. श्री प्रकाशचद्रसूरि पट्टे आ. श्री पद्मसूरिजी के हस्ते संपन्न हुई।


केशरियाजी मंदिर : फालना के केशरियाजी नगर में (नेहरू कालोनी), सादडी निवासी हाल फालना श्रीमती सुखाबाई छगनराजजी मीठालालजी धोका परिवार ने नूतन जिनालय निर्माण करवाकर वि. स. २०५६ माघ शु. ६ शुक्रवार दि. ११.२.२००० के विजय मुहूर्त १२.१७ बजे, आ. श्री पद्मसूरिजी आ. ठा की शुभ निश्रा में संपन्न हुई। इसका खनन मुहूर्त दि . जेठ सु. १२ शुक्रवार, दि. २५.६.९९ को तथा शिलान्यास स. २०५६, आषाढ शु. २, बुधवार दि. १४.७.१९९९ को संपन्न हुआ था।


श्री दादावाडी आदिनाथ जी मंदिर : श्री संघ फालना द्वारा निर्मित दादावाडी में मूलनायक श्री आदिनाथ दादा आदि जिनबिंब तथा गुरुमंदिर में खतरगच्छ दादा गुरुदेव आ. श्री जिनचंद्रसूरि, जिनदत्तसूरि आदि गुरुबिंबों की प्रतिष्ठा वि. स. २०५९, वैशाख शुक्ल ३, अक्षय तृतीया, बुधवार, दि. १५ मई २००२, को खतरगच्छ आ श्री जिनकान्तिसागरसूरिजी शिष्य आ. श्री मणिप्रभासागरसूरिजी के हस्ते महोत्सव पूर्वक संपन्न हुई। बाद में भगवान महावीरजी जिनबिंब की प्रतिष्ठा स. २०५९ के माघ शु. ५, शनिवार के संपन्न हुई।


श्री निम्बोरानाथ महादेव : फालना से ५ किमी. दूर, साण्डेराव फालना की मुख्य सडक पर ‘श्री निम्बेश्वर महादेव’ का प्रसिद्ध तीर्थ धाम है। जनश्रुति के अनुसार, यह तीर्थ पांडवों ने बनवाया था। इसका प्राचीन नाम हीरिलया बैद्यनाथ था। कहते हैं कि पूर्व में पांडवों ने अपने अज्ञातवास केसमय यहां नवदुर्गा का यज्ञ किया था। मां श्री नवदुर्गाजी का यहां चमत्कारी मंदिर है। यहां का शिवमंदिर जमींदोज हो गया था। युगलनाथ निम्बेश्वर महादेव के अनेक चमत्कार प्रचलित है। यह मंदिर कनफटे संप्रदाय के साधुओं की प्रधान गद्दी है। मंदिर के दाहिनी ओर की बावडी पांडवराज युधिष्ठिर ने बनवाई थी, जो दर्शनीय है। महाशिवरात्रि, वैशाखी पूर्णिमा और श्रावण माह में यहां मेला लगता है। उदयपुर के महाराणा उदयसिंह के कुवंर शार्दुलसिंह के द्वारा १६वी शताब्दी में साण्डेराव का पट्टा सुव्यवस्था हेतु दिया गया।


मार्गदर्शन : फालना सबसे नजदीक और महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन है। जोधपुर हवाई अड्डा यहां से १४५ किमी. और उदयपुर १३० किमी. की दूरी पर है, जबकि राणकपुर ३६ किमी. और राता महावीर २८ किमी. दूर है। रोडवेज सरकारी व प्रायवेट बस, टैक्सा-ऑटो इत्यादि सारे साधन यहां उपलब्ध हैं। खिमेल, रमणीया, सेसली व भद्रंकरनगर करीबी तीर्थ हैं।


सुविधाएं :  स्वर्ण मंदिर में छोटी-बडी व आधुनिक अनेक रूम व भव्य हॉल, उपाश्रय तथा सर्वोत्तम भोजनशाला व आंयिबल की सुंदर व्यवस्था उपलब्ध है। अंबिकानगर में संघ रसोडा, विशाल हॉल छोटी बडी व ए/सी की २५ रूम है। न्याति नोहरे में करीब दस रूम के साथ अच्छी व्यवस्था है। एक किमी. दूर खुडाला प्रवेशद्वार के पास १७ ए/सी रूम व हॉल लिफ्ट के साथ है। शहर में अनेक होटल व विश्रामगृह हैं।

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